कितने दिन के बाद मिला हूँ
मैं खुद से बातें करता हूँ
तेरा हाल मुझे मालुम है
तू बतला, अब मैँ कैसा हूँ
मैं तन्हा घर से निकला था
रात ढले तन्हा लौटा हूँ
टूट गया आईना दिल का
अब घर में तन्हा रहता हूँ
फटी जेब है होश हमारा
सिक्का हूँ खुद खो जाता हूँ
कब्र बदन की और तन्हाई
मैं बच्चे सा सो जाता हूँ
ख्वाब़ हैं या बस दीवारें हैं
क्या शब भर देखा करता हूँ
बिना पते के ख़त जैसा मैं
क्यूँ दर-दर भटका करता हूँ
मेला-झूला-जादू, दुनिया
बच्चा हूँ मैं, खो जाता हूँ
दर्द है या दीवानापन है
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
दिल के भीतर सर्द अँधेरा
मैं तुझको ढूँढा करता हुँ
भूल गया बाजार मे मुझको
मैं तेरे घर का रस्ता हूँ
(यह रचना प्रख्यात शायर मरहूम नासिर काज़मी साहब को समर्पित है)
फटी जेब है होश हमारा
ReplyDeleteसिक्का हूँ खुद खो जाता हूँ.....
apoorv baht hi shaandar.......... is line mein kahin na kahin khud ko paata hoon........
भाई वाह क्या बात हैं, बहुत ही सुन्दर व दिल से लिखी गयी लाजवाब रचना। बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeletekhud se baaten jab karne lagta hai aadmi to zindagi paas aakar baith jati hai,,,,,,,,
ReplyDeleteदर्द है या दीवानापन है
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
bahut hi badhiyaa
मेला-झूला-जादू, दुनिया
ReplyDeleteबच्चा हूँ मैं, खो जाता हूँ
दर्द है या दीवानापन है
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
दिल के भीतर सर्द अँधेरा
मैं तुझको ढूँढा करता हुँ
भूल गया बाजार मे मुझको
मैं तेरे घर का रस्ता हूँ
bahut he sunder
lajawab
अपूर्व जी कितनी सुन्दर रचना गढ़ दी आपने । हर पंक्तियों का अपना जादू है । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteHi, too good... after such a long time such a beautiful poem.
ReplyDeleteदर्द है या दीवानापन है
ReplyDeleteहँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
आज कल के हालत को लेकर नए अंदाज़ की ग़ज़ल है अपूर्व जी ...........बहोत अच्छा लिखा है ...
तेरा हाल मुझे मालुम है
ReplyDeleteतू बतला, अब मैँ कैसा हूँ
अलग सा लगा आपका अन्दाज़ ए बयां
Comment Part 1:Grammer...*
ReplyDeletewah dost abki bar meter main bhi...
"Felun x 4"
ye intentionally tha ya JLT?
Jo bhi ho agar is tarike ki (felun x 4) koi beh'r hoti hai to aapko aapki pehli ghazal ke liye badhai....
(waise pehle 4 sher ki hi counting ki hai)
aur ghazal nahi bhi to ek mukamill meteric nazm ke liye badhai.
Sabse badi baat kafiya aur radif main ek bhi dosh nahi...
makte main kewal 'aa' ki matra common le ki aapne 'kafiye' main jo liberty li hai, wo isko ghazal banane main mahatvapoorn yogdaan deti hai....
Coming soon.... Kala Paksha, Bhav Paksha
*Vedhanik Chetaavani: Examniee may be better that examner.
PS: Club membership ka kya hua?
मैं तन्हा घर से निकला था
ReplyDeleteरात ढले तन्हा लौटा हूँ
वाह क्या बात है ..........
टूट गया आईना दिल का
अब घर में तन्हा रहता हूँ
आदमी अकेला आया है और जायेगा भी अकेला..........
बिना पते के ख़त जैसा मैं
क्यूँ दर-दर भटका करता हूँ
बहुत बहुत खुब ...........
मेला-झूला-जादू, दुनिया
बच्चा हूँ मैं, खो जाता हूँ
जिन्दगी के झमेले मे आदमी ऐसा ही तो है ..........
दर्द है या दीवानापन है
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
दिवानेपन मे अकसर ऐसा ही होता है ............
दिल के भीतर सर्द अँधेरा
मैं तुझको ढूँढा करता हुँ
वाह बिल्कुल रुह को छू गयी यह पंक्तियाँ.......
अपूर्व जी
आपकी रचनाये बेहद खुबसूरत होती है ......बिल्कुल जिन्दगी जैसी ............इस पूरी रचना मे ऐसा लगा की मै खुद से बाते करी है ......यही रचनाकार की सफलता है !
Comment Part 2:Bahv paksha*
ReplyDeleteEk ek karke dekhte hain...
1)Main bhi milna chahta hoon apne se, wo 'main' jo kho gaya hai, ya jo shayad kabhi tha hi nahi usse, kaise dhoonodou use. Khud se baatein karne ki koi surat ho to humein bhi bataiyen.
2)Give and take relation?
3)Ho sakta hai apne ye kisi aur sense main likha tha par mujhe ye bada adyatmik laga....
Aap vidwaan hai samajh gaye honge, shri shri shir 1008 'Lucky Ali' ne 'Kaho Na...' naamk puran main bhi iski 'Rishi Hritik' ke nrity ke madhyam se pushti ki thi.
4)o ho...., ye shayad us sher ka Sequal part hai....
"Aainea dekh ke tassali hui, humko is ghar main jaanta hai koi"
Bhai agar kisi ne is sher ko nahi suna hoga to shayad aapke sher ko samjhna mushkil ho jaiye.Kyunki beshak aapka ye sher as in 'individual' bhi mukamill hai par 'gulzaar ki marsim' ke baad 'Awesome' ki catogery main aa jata hai...
5)Prattkon ka behterin nirvahan.Par is sher main hosh>> fati jeb to sikka >> aap? yaani aap hosh main kho jaate hain? ya aapke hosh kho jate hain tab to jeb aur sikka dono hi hosh hue...
is she'r ki aapse vyakhya chahoonga...
waise meaning clear hai, par prateek dhoondle...
6)just one line 'Flawless'. Best she'r of the ghazal....
7) Deewaron se khwaab, na toote hi hain na bante hi hain, aur us paar dekha bhi mushkil, bahut door tak jaata sh'er !!
8) Samanya Bhav , aisa lagta hai kahin pehle bhi padha hai....(Ye mere niji vichaar hai, asha hai bura nahi maanenge)
9) Lagta hai mere liye likha hai aapne....
"Darpan!! Grow Up !!" Simple but not like 8th one Cute sher... very sweet !! //Gungunane laiyek.
10) hmmmmm.....
11) Virodhabaas.... //Waise ye bhi mujhe aadhyatmik sher laga...
Finding Him !!
Aproov sa'ab kabhi kisi ne mujhse kaha tha ki " chaandi jaisa rang.." laxmi ji ki aarti bhi hai...
hansi aaie thi sun kar unse explain bhi kiya tha, kabhi baad main batoonga, waise 'sufi songs' ki yahi defination hoti hai...
12)ek sher:
"Khoob gaye pardes ki apne deewaron dar bhoolgaye, Sheesh mehal ne aisa ghera mitti ke ghar bhool gaye"
ek mera bhi:
"Baazaron main chadne waloon yaad ise bhi rakhna tum, Aadha bharat aaj bhi shayad aadhi roti khata hai."
(irrelevent, i know !!)
*Vedhanik Chetaavani: Examniee may be better that examner.
अपूर्व भाई नमस्कार !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर तरीके से दिल की बात लिख दिया है आपने .
बहुत पसंद आई आपकी गजल शुक्रिया जी
ReplyDeleteदिल के भीतर सर्द अँधेरा
ReplyDeleteमैं तुझको ढूँढा करता ह.....पढ़कर कुछ पाया सा महसूस होता है ..दिल से लिखे शब्द भावों को उठातें हें... बहुत से लिखे में हम तुमको पढा करतें हें
तेरा हाल मुझे मालुम है
ReplyDeleteतू बतला, अब मैँ कैसा हूँ
वाह.....!!
दर्द है या दीवानापन है
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
बहुत खूब.....!!
अपूर्व जी सीधे -साधे शब्दों में गहरी बात कहना खूबी है आपकी ....!!
well said man........
ReplyDeleteअपूर्व जी,
ReplyDeleteछोटी बहर में भावों की शानदार प्रस्तुति ! कई शेर दिल ke बहुत करीब लगे ! सीधे, सच्चे, सरल शब्दों में स्पष्टतः उभरते भाव, अप्रतिम ! ध्वनि इतनी साफ़ कि कान बंद करके भी सुनी जा सके ! सचमुच अपूर्व !! --आ.
बिना पते के ख़त जैसा मैं
ReplyDeleteक्यूँ दर-दर भटका करता हूँ
बहुत सुन्दर. गहरे भावों की रचना. अत्यधिक पसंद आई पूरी रचना.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
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ReplyDeleteबिना पते के ख़त जैसा मैं
ReplyDeleteक्यूँ दर-दर भटका करता हूँ
bahut sundar ghazal likhi hai aapne.
har sher umda hai.
badhai..
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2009/09/blog-post_19.html
बहुत ही सुंदर भावो की अभिव्यक्ती |
ReplyDeleteबधाई
Arey! Apoorv .......... kahan ho bhai.......? Tabiyat to theek hai na......????????/ nazar nahi aaye? aur kuch likha bhi nahi.......?
ReplyDeletejaldi se apni well being ki report do....... fikr lagi hai?
ReplyDeletedard hai ya diwaanapan hai
ReplyDeletehnste-hnste ro padhtaa hooN
ek bahut hi khoobsurat, dil-fareb aur
apnaa-sa sher....hr dil ki aawaaz...
waah !!
khayaalaat gzl ki fitrat se mel khaate haiN,,
ye baat comments ke jawaab meiN kahi gayi baatoN
se b-khoobi maaloom padhtaa hai
mubarakbaad
---MUFLIS---
दर्द है या दीवानापन है
ReplyDeleteहँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
दिल के भीतर सर्द अँधेरा
मैं तुझको ढूँढा करता हुँ
भूल गया बाजार मे मुझको
मैं तेरे घर का रस्ता हूँ.
gazab ka likhte hai nazare hatne ka naam nahi leti .jab aagaz ye hai to anzaam kya hoga ?wo yakinn hi khoobsurat rahega .dhero badhaiyan .
apoorvji,
ReplyDeletedarshanji dvara di gai tippani aour usake baad aapka shabdik vrnan dono is poori rachna se behatar lage/ darasal jab kisi rachna ki samiksha hoti he to rachna ko usaka pooraa shareer prapt ho jata he/ samiksha ka arth sirf do baate nahi hoti, samiksha hoti he jese ki darshan ji pryog kar rahe he/ mujhe achha lagtaa he yah dekh kar ki koi to he jo gambhirtaa se rachna ko parakh rahaa he/ aapko bataa du ki achhi rachna padhhna, us par tippani dena kathin hota he, aour jab bhi koi tippani apane vistaar me hoti he to usaka maza alag hota he/ mene kaee saaree aalochnaatmak kitabo ka adhdhyan kiya he, kartaa hu, aour usame doob jaataa hu/ so darshanji dvara jo kaarya ho rahaa he usake liye aap aour darshnji dono badhaai ke patra he/ is rachna par tippani dene se achha he aap dono ke comment baar baar padhhta rahu/
दर्द है या दीवानापन है
ReplyDeleteहँसते-हँसते रो पड़ता हूँ..jab dard pe ekhtyaar nahi rahta to hum hanste hanste ro padte hai...मैं तन्हा घर से निकला था
रात ढले तन्हा लौटा हूँ
टूट गया आईना दिल का
अब घर में तन्हा रहता हूँlazim tha ke dekho rasta kyee din our..tanha gye khun??ab raho tanha kyee din our..
hmmm...... chalo achcha hua tumne bata diya..... nahi to firk lagi hui thi ...... ki kya baat hai? Apoorv ki tabiyat to nahi kharab hai kahin?
ReplyDeleteदर्द है या दीवानापन है
ReplyDeleteहँसते-हँसते रो पड़ता हूँ
bahut khoob
मेला, झूला, जादू ,दुनियाँ
ReplyDeleteबच्चा हूँ मैं खो जाता हूँ।
वाह क्या बात है।
वैसे तो पूरी गज़ल अच्छी है।
आप वहां तक पहुंच ही जाओगे
ReplyDelete,
रास्तों का काम है मुश्किल होना।
ओ भाई मियाँ! आप हैं कहाँ ? और इतने ज़माने से हमसे वाबस्ता क्यों न हुए भला ? क्या कहन है आपकी और क्या लहजा है अहा! अब दूर न हूजिएगा। मालिक का शुक्र है जो आप जैसे अहले-ज़ौक से दो चार हुए।
ReplyDeleteबहोत सुंदर ब्लॉग है आपका। और हाँ कविता भी अपने बहोत सुंदर अंदाज में लिखी है। बधाई।
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
एक बार फिर पढ़ी आपकी ग़ज़ल ....बस ये पंक्ति ..."तू बतला, अब मैँ कैसा हूँ
ReplyDelete" अपनी मासूमियत से कहीं भीतर तक बेचैन कर जाती है ....!!
पास जी को आपने पढा है जानकार ख़ुशी हुई ....!!
सरल.. सोम्य..सुंदर कविता...
ReplyDeleteतुम्हारी खुद की पारदर्शी टिप्पणी भी अच्छी लगी
अच्छा लिखते हैं आप... यह पिछले पोस्ट को देख कर कह रहा हूँ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के कुछ शेर किसी किसी गज़लों से मिलते लगते हैं... आप अन्यथा मत लेना मैं हु-ब- हु नहीं कह रहा
कितने दिन के बाद मिला हूँ
मैं खुद से बातें करता हूँ
तेरा हाल मुझे मालुम है
तू बतला, अब मैँ कैसा हूँ
इसे पढ़ कर घुलाम अली का गया ग़ज़ल याद आता है 'इतनी मुद्दत बाद मिले हो किन सोचों में घूम रहते हो.
अपनी बता अब तुम कैसे हो
ख्वाब़ हैं या बस दीवारें हैं
क्या शब भर देखा करता हूँ
... यह अच्छा बन पड़ा है
दिल के भीतर सर्द अँधेरा
मैं तुझको ढूँढा करता हुँ
भूल गया बाजार मे मुझको
मैं तेरे घर का रस्ता हूँ
... बहुत सारगर्भित है... मुबारक हो...
हाँ ब्लॉग बहुत खुबसूरत है यह कहना भूल गया था...
ReplyDeleteनाम के अनुरूप ही ...अपूर्व !
ReplyDeleteदिल के भीतर सर्द अँधेरा
ReplyDeleteमैं तुझको ढूँढा करता हुँ
अति सुन्दर अपूर्व जी
दर्पण के इतना कुछ कह लेने के बाद...इतना क्या?? सब कुछ कह लेने के बाद इस नायाब ग़ज़ल पे और कुछ कहना शेष नहीं बचता।
ReplyDeleteकाज़मी साब के हम भी पुराने मुरीद हैं....खास कर उनका लिखा "दिल में इक लहर सी उठी है अभी" और फिर "अपनी धुन में रहता हूं..." वाले तो मेरे सर्वकालीन पसंदीदा हैं।
उनकी स्पष्ट छाप दिख रही हैं तुम्हारे शेरों पर...तो अच्छा लगा कि तुमने ग़ज़ल उनके नाम समर्पित की।
...और तुम्हारी सम्स्त शुभकामनायें दवा के साथ अतिरिक्त टानिक का काम कर रही हैं। शुक्रिया !
Q:Difference b'ween quality and quantity?
ReplyDeleteA:Difference b'ween Aproov and Darpan.
doobara aaiya hoon padhne.
Chid ho jaati hai aap jaise alsiyoon se(chali kahe sui se ki teremein ched) jab Blog roll main aapka naam neeche dikhta hai to lagta hai ki kya pata feed update nahi hua ho par koi nai post aa gayi ho.
Par wahi dhaak ke teen paat..
Aalas kam karo Aproov Bhai (See Who is Talking? haha)
chali=chalni
ReplyDeleteapoorva bhia , bahut acchi gazal , zindagi ke kareeb .. bahut se jazbaato ko samete hue...
ReplyDeletemeri badhai sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
मेला-झूला-जादू, दुनिया
ReplyDeleteबच्चा हूँ मैं, खो जाता हूँ
वाह!
bahut masoom si rachna hai...pyara laga har sher, par is sher par jaise dil se aah nikal gayi.
ReplyDeleteतेरा हाल मुझे मालुम है
तू बतला, अब मैँ कैसा हूँ
शहर से जब मैं तन्हा निकला
ReplyDeleteक्या सोचा था, क्या–क्या निकला
दिल, सोचा था, पत्थर होगा
दिल तो एक खिलौना निकला
उनकी यादों में डूबा - सा
फुर्सत का हर लम्हा निकला
गम , कहते थे, कुछ पल होगा,
जीवन भर का किस्सा निकला
किस् से कहते, दिल की बातें,
जो भी था वो रुसवा निकला
दिल दरिया, और आखें भीगी,
“तन्हा“ फिर भी प्यासा निकला।
- लेखक – विशाल आनंद ‘तन्हा’
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ReplyDeleteकितने दिन के बाद मिला हूँ
ReplyDeleteमैं खुद से बातें करता हूँ
kya baat kahi hai jab main kabhi akele hota hun to main khud se batin karta hun sawal karta hun apne aap se aur jawab bhi khud hi deta hun aur mujhe pata chalta hai ki main kya hun ....
bahut achi line kahi hai sir aapne kabiletariff