कौन सा अनजाना गीत है वह जिसे चैत्र की भीगी भोर में चुपके से गा देती है एक ठिगनी, बंजारन चिड़िया विरही, पत्र-हीन, नग्न वृक्ष के कानों मे कि गुलाबी कोंपलों की सुर्ख लाली दौड़ जाती है उदास वृक्ष के शीत से फटे हुए कपोलों पे और शरमा कर नये पत्तों का स्निग्ध हरापन ओढ़ लेता है वृक्ष खोंस लेता है जूड़े मे लाल-पीले फूलों की स्मित हँसी लचकती, पुनर्यौवना शाखाओं को कंधों पर उठा कर समुद्यत हो जाता है उत्तप्त ग्रीष्म के दाह मे जलने के लिये क्रोधित सूर्य के कोप से आदग्ध पथिकों को आँचल मे शरण देने के लिये
सिर्फ़ बसंत मे जीना बसंत को जीना ही तो नही है जिंदगी वरन् क्रूर मौसमों के शीत-ताप सह कर भी बचायेरखना थोड़ीसीसुगंध, थोड़ीहरीतिमा थोड़ीसीआस्था और उतनी ही शिद्दत से बसंत का इंतजार करना भी तो जिंदगी है
..सपने देखना अच्छा लगता है..बचपन मे अक्सर किताबें लिखने के, मूवीज़ बनाने के, पेंटिंग्स बनाने के और ऐसे ही कितने अजीब से सपने देखा करता था...तब से एक ज़माना हो गया..मैं भटकने की कोशिश करता रहा..और ज़िन्दगी मुझे अपने रास्ते हाँकती रही..वक्त यूँ ही बीतता रहा..हाँ मगर चन्द ख्वाब अभी भी मेरी मेज की दराज़ में पड़े हैं..जिन्हें रोज़ सुबह दराज़ खोल कर देख लेता हूँ..और फिर आँफ़िस चला जाता हुँ..दिन गुजर जाता है.. कभी-कभी जब रात मे नींद नही आती है..तो उन्ही पुराने ख्वाबों की चादर ओढ़ कर रात गुजार देता हूँ..जानता हूँ..सारे सपनों को हकीक़त की धूप नसीब नही होती..मगर वे जीने की एक वजह तो दे ही देते हैं..और फिर क्या पता..शायद...!
फ़िरदौस ख़ान : लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी
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फ़िरदौस ख़ान को लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से जाना जाता है. वे शायरा,
लेखिका और पत्रकार हैं. वे एक आलिमा भी हैं. वे रूहानियत में यक़ीन रखती हैं और
सूफ़...
पुत्र प्राप्ति के लिए गुरुवार का व्रत
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पुत्र प्राप्ति के लिए गुरुवार का व्रतपुत्र प्राप्ति के लिए गुरुवार का व्रत
एक पारंपरिक और आध्यात्मिक उपाय माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और
बृहस्पति दे...
पुस्तक लोकार्पण
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'रामु न सकहिं, नाम गुन गाई' पुस्तक लोकार्पण समारोह की कुछ झलकियाँ।
लेखक...प्रो0 उदय प्रताप सिंह। दिनांक 28-03-2025, स्थान: राजकीय पुस्तकालय,
वाराणसी।
...
होठों के आस पास ये इक टूटा जाम है …
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*कोमा कहाँ लगेगा कहाँ पर विराम है.किसको पता प्रथम है के अंतिम प्रणाम है.घर
था मेरा तो नाम भी उस पर मेरा ही था,ईंटों की धड़कनों में मगर और...
जब उदास होती हूँ
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जब उदास होती हूँ
किसी नदी का हाथ थाम लेती हूँ
जब फफक कर रो पड़ने को होती हूँ
किसी पेड़ को गले लगा लेती हूँ
जब अन्याय की पराकाष्ठा होती है
और मूर्खताप...
लोकधर्म को नमाज़ अदा करने को तड़पता फिल्मकार
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- 'समयांतर' के फरवरी अंक में प्रकाशित
- ‘नमाज़ आमार होइलो ना आदाय ओ आल्लाह'
ऋत्विक घटक के बारे में ज़्यादातर बातें फिल्मों के संदर्भ में होती है - बहुत
...
रिश्तों का अवमूल्यन
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रिश्तों का अवमूल्यन होना दुखद होता है, लेकिन उन्हें बचाना और निभाना भी
जरूरी हो तो बहुत कुछ किया जा सकता क्या हम शब्द या व्यवहार से रिश्ते में
दरार पैद...
जादू टूटता भी तो है।
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There are monsters inside my heart. Every couple of days or months I need
to go on a holiday to let them lose in the wilderness of solitude. They
graze u...
वादा किया वो कोई और था, वोट मांगने वाला कोई और
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तिवारी जी जब से कुम्भ से लौटे हैं तब से बस अध्यात्म की ही बातें करते हैं।
कई ज्ञानी जो उनकी बातें सुनते हैं वो पीठ पीछे यह भी कहते सुने जाते हैं कि
तिवार...
चश्मा टूटने का स्वप्न
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मैं अपनी डायरी में अर्थहीन और कथानक के हिसाब से छिन्न भिन्न सपनों के बारे
में लिखता रहा हूँ। उन सपनों के देखे जाने के कुछ समय पश्चात मुझे कोई उकसाता
रहा ...
हाथ से लिखी किताब
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उस घर में वो अक्सर जाता था। उस घर को बाहर से देखने पर वो अनगढ़ पत्थरों से
बना साधारण घर दिखाई देता था पर उसमें एक अजाना आकर्षण था। उस घर में कुछ ऐसा
थ...
चाय-रोटी
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बचपन में हम लोग सुबह के नाश्ते में चाय-रोटी खूब चाव से खाते थे। परिवार बड़ा
और कमाने वाले अकेले पिताजी ही होने के कारण हमारा परिवार मध्यम वर्ग में भी
गरी...
किताब मिली - शुक्रिया - 22
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दुखों से दाँत -काटी दोस्ती जब से हुई मेरी
ख़ुशी आए न आए जिंदगी खुशियां मनाती है
*
किसी की ऊंचे उठने में कई पाबंदियां हैं
किसी के नीचे गिरने की कोई भी हद ...
एक उद्योगपति की मौत
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एक खेत मजदूर अक्सर खेत मजदूर के घर या छोटे किसान के घर पैदा होता है, मजदूरी
करना उसकी नियति है, वह वहीं काम करते हुए अभावों में जीवन जीता है। उसकी
आकांक्षा...
आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व
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शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन ही मन संवाद की आदत है।
पहली बार यह बातचीत बाहर आने को मचली।...
The post आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्र...
Resep Tempe Bacem Praktis - Resep Masakan 4
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Resep Tempe Bacem Praktis dan Enak. Tempe di bacem adalah resep yang sering
kita jumpai, tahukah anda bagaiman cara membuat makanan ini?. Ternyata eh
terny...
thinking of my father ऐसे ही
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नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय नमश्शिवाय
...
पिताजी स्नान करते हुये जिन स्तोत्रों को गाते थे, ज्ञात नहीं कि ऐसा करना
शास्त्रसम्मत है भी या न...
तीन शहर तीन मरीज़ और कोरोना
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कोविड-19 वायरस से जूझते हुए भारत को लगभग चार महीने बीत चुके हैं। हममें से
कई जो अब तक न्यूज़ सुनकर ही परेशान और दुखी हो रहे थे अब उन्हें भी अपने
परिचितों या...
कविता : खेल
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शहर के बीच
मैदान
जहाँ खेलते थे बच्चे
और उनके धर्म घरों में
खूँटी पर टँगे रहते थे
जबसे एक पत्थर
लाल हुआ तो
दूसरे ने ओढ़ी हरी चादर
तबसे बच्चे
घरों में कैद...
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं :(
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काल का भी उस पर क्या आघात हो ... जिस बंदे पर महाकाल का हाथ हो पुस्तकायन
ब्लाग की ओर से ब्लाग जगत के सभी साथियों को महाशिवरात्रि की हार्दिक
शुभकामनाएं.....!!
सुंदर,विचित्र,अद्भुत
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जिनमें न नाक कटने की जलन है
और न ही रीढ़ झुका लेने का दर्द।
वैसे भी
गीली लकड़ियाँ कहाँ जल पाती है
फिर वो चाहे पानी से गीली हों या अश्रुओं से नम।
◆
झुकना पड़ता ...
पॉर्न क्रांति
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सदन में विराजे हुए माननीयों से लेकर
सौ नंबर गश्ती दल के आरक्षियों तक
सभी मोबाइल फोन पर गंभीर कार्य में
अति व्यस्त हैं सो उन्हें तंग न किया जाए
शीघ्र ही वे आ...
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
और इस तरह मारा मैंने अपने बोलने को
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————
मुझे कुछ बोलना था
पर मैं नहीं बोला
और ऐसा नहीं है कि
मैं बोलता तो वे सुन हीं लेते लेते
पर मैं नहीं बोला
मैं नहीं बोला जब कि मुझे
एक बंद कमरे से बोलने क...
ज़िंंदगी तमाशा..
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नजम सेठी के यूट्ययूब चैनल पर बतकही के एक शो में बात करती एक जवान लड़की
दिखी. *एमान सुलेमान*. लम्बा चेहरा. छोटे-छोटे बाल. अटक-अटककर बोलना, मगर
ठहरी हुई अ...
ऐनी सेक्सटन की कविताएँ : अनुवाद - अनुराधा अनन्या
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पिछली सदी के आरम्भ में अमेरिका में के समृद्ध व्यापारिक घर जन्मीं* ऐनी
सैक्सटन*, एक असाधारण कवयित्री हैं। उनकी कविताओं को confessional verse, स्टाइल
की...
पल्ला झाड़ने से बेहतर है कि आत्मसमीक्षा करें
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PC - Praveen Khanna
सनाउल हक़ के मारे जाने की पुष्टि अफगानी स्रोत एनडीएस से हुई है। परसों। वह
अफगान सरकार और अमेरिका की संयुक्त आतंकवाद विरोधी लड़ाई में म...
कविता के अनुर्वर प्रदेश की ज़रख़ेज़ ज़मीन
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भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार समारोह में शुभम श्री आई नहीं थीं। अच्युतानंद
मिश्र पहले ही कविता पढ़ चुके होंगे। अदनान कफ़ील दरवेश पढ़ रहे थे। उनकी
तस्वीरों और कव...
फहरा आज तिरंगा
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लालकिला से लालचौक तक,फहरा आज तिरंगा,
रावी-सतलज-सिन्धु-झील डल, का जल हो गया चंगा।
महानदी-कृष्णा-कावेरी, केन-बेतवा-चम्बल-
जश्न मनायें व्यास-नर्बदा,सरयू-यमुन...
एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी - पन्द्रहवां दिन - दो
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*29.उजड़ी इमारत की तरह का इंसान *
लेकिन हमारे पास पलकें भी थीं और हमें आज की रात चैन से सोना भी था और इसके
लिए सर्वाधिक आवश्यक था सबसे पहले एक ठिकाना ढूँढ...
लवली गोस्वामी की तीन नई कविताएं
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*(लवली गोस्वामी हिंदी की युवा कवयित्री हैं। बहुत कम और लंबे-लंबे अंतराल
लेकर कविताएं लिखती हैं। इसीलिए उनका स्वर 'अर्धविरामों में विश्राम' से बना
...
काबुल मेरा यार
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*खालिद हुस्सैनी की किताब 'काइट रनर' के एक अंश का अंग्रेजी से अनुवाद *
मलबा और भिखारी। जहाँ भी मेरी निगाह जाती, बस यही नज़ारा था। मुझे याद है बचपन
के दिन...
और जिस समय
-
और जिस समय
गुलमोहर के बौराये डाल पर बैठे
कुछ मदमस्त गौरये
बेपरवाह होकर झूल रहे थे
एक फुनगी से दूसरी फुनगी पर
और जिस समय
किसी पिता की आँखें भर आयी थी
जब...
अरुण देव की कविता : शहंशाह आलम
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*‘सूखे पत्तों में कोई*
*हरा पत्ता’*
अरुण देव की कविताएँ
शहंशाह आलम
*क*विता का आस्वाद अपना एक अलग महत्व रखता है. यहाँ एक सवाल यह खड़ा होता है
कि क्...
एक जवान साथिन के लिए जो अब कहां जवान रही..
-
ज़माना हुआ एक कबीता लिखे थे. एक जनाना थी, दुखनहायी थी, रहते-रहते मुंह
ढांपकर रोने लगती थी, थोड़ा हम जानते-समझते थे, मगर बहुत सारा हमरे पार के परे
था. सुझ...
Ctrl Alt Cinema
-
Ctrl Alt Cinema is now in its 3rd Year! Announcing our annual course 2019
dates: June 16th – July 3rd. Ours is an intensive, 18 days residential
course on ...
वैदिक शब्दों की निर्मिति - 'गौ' शब्द
-
वैदिक काल के शब्द बताते हैं कि उनका निर्माण और नामकरण जीवों और वस्तुओं की
गति के संदर्भ में किस तरह हुआ होगा।
वेदों में *गौ *शब्द जाने और गति के अर्थ मे...
"मेरे आशावाद का आधार है भूमंडलीय यथार्थवाद"
-
*'परिकथा' पत्रिका के जनवरी-फरवरी, 2019 के अंक में संपादक शंकर द्वारा लिया
गया इंटरव्यू*
*शंकर :* रमेश जी, आप 1970 के आसपास उभरे एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ...
व्यंग्य : आँख दिखाना
-
एक व्यंग्य : आँख दिखाना --आज उन्होने फिर आँख दिखाई
और आँख के डा0 ने अपनी व्यथा सुनाई--" पाठक जी !यहाँ जो मरीज़ आता है ’आँख
दिखाता है ...
तो फिर ये दूरियां क्यों है?
-
उफ़्फ़!!तुम्हारे यह अक्षर!
सुंदर हैं तुम्हारी ही तरह
तुम्हारे ही भावों में लिपट कर
पहुंच जाते है मेरे अंतर्मन में
और उठा देते हैं कई तूफान
देह और रूह के बीच क...
यह विदाई है या स्वागत...?
-
एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है |
अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं
पह...
Be in bliss
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To be in bliss should not be the goal.
No effort is needed. In fact effort takes you far from bliss.
To be "this" or to be "that" is not the goal.
So, just ...
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अपार श्रद्धा की पराकाष्ठा पर आजीवन अडिग रहे :
पं. रामनारायण मिश्र...(2)
सन् 1993-94 में दो मोर्चों पर मैंने भरपूर श्रम किया। यह तो ऐसा ही था, जैसे
दो नदिय...
-
तुमने पूछा
कौन हैं हम आपके
शब्द और प्रश्न
सरल और सीधे हैं
उत्तर कठिन
जटिल है अभिब्यक्ति
भाषा और भावनाओं से
यह भी बधें होते
सीमाओं के दायरे में
सुनो
जानना ही...
तुम्हारी कविताओं में इतना अँधेरा क्यों है ?
-
विंड ब्लोन ग्रास अक्रॉस द मून, हिरोशिगे
Wind Blown Grass Across the moon, Hiroshige
तुम्हारी कविताओं में इतना अँधेरा क्यों है ?
क्या चाँद पर भी,
अधिकतर अ...
एक सपने की हत्या
-
कुछ मैंने की, कुछ तूने की
कुछ मिलकर हम दोनों ने की
इक सपने की हमने हत्या की ।
समझौतों का ये जीवन जीया
मिलकर गरल कुछ हमने पीया
जो करना था वह हमने न किया ।
...
-
आज महिलाएं घर की दहलीज से ही बाहर नहीं निकली है... बल्कि उन्होंने अपने हुनर
से ये साबित कर दिया कि अंतरिक्ष में उड़ान भरने से लेकर रेलवे स्टेशन पर कुली
का...
म्हारी प्रीत निभाजो जी
-
*"प्यार में तकलीफ ही क्यों होती है ?" *
"इसलिए कि प्रेम अधिकार देता है, और वो जब मिलता नहीं या मिलने का सिर्फ छलावा
देता है तो एकाकीपन घेर लेता है। और उस...
ऑफिस में एक कबूतर
-
हॉस्टल के साझे बाथरूम में
एक कबूतर घुस आया था
टंकी पर बैठा ही था
कि लूसी झपटी उस पर.
वह फुदकता रहा,
इस दीवार से उस दीवार पर
पर लूसी के पंजे से
बच न सका....
-
जब भी लौटता हूँ गाँव से शहर.
कुछ उतनी ही देर रहती हैं
ज़ेहन में अब यादें गाँव की
के जितनी देर जूते के सोल में
चिपकी रहती है
गीली मिट्टी गाँव की
याद ...
-
*ग़ज़ल*
*____________*
कहा हो हम ने कुछ , ऐसा नहीं है
कभी तुम ने भी तो पूछा नहीं है
***
मिला इन’आम सच कहने का उस को
कड़ी है धूप और साया नहीं है
***
सिखाया तज्...
IF MY HEART IS A RADIO
-
If my heart is a radio
I’ll catch you every morning, through the wave.
Pulling up my mind to the raindrops
I’ll sing you as a song through the wave.
Its...
एक जोड़ी पुराने जूते
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जब कहीं से लौटना होता है तब दुःख होता कि यहाँ से क्यों जा रहे हैं. किन्तु
कभी-कभी लौटते समय दुःख होता है कि आये क्यों थे. रंग रोगन किये जाने और नया
फर्श डा...
वेरा पावलोवा की दो कविताएँ
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*"एल्बम फॉर द यंग (ऐंड ओल्ड)" नाम है वेरा पावलोवा के नए कविता संग्रह का.
पिछले कविता संग्रह "इफ देयर इज समथिंग टू डिज़ायर" की तरह इस संग्रह की
कविताओं का भ...
चलता फिरता प्रेत... (वेताल.. विलाप)
-
*A man will be imprisoned in a room with a door that’s unlocked and opens
inwards; as long as it does not occur to him to pull rather than push.*
*-**Lud...
प्रकृति करगेती के कविता संग्रह से कुछ कविताएँ
-
इस साल पुस्तक मेले में खूब कविता की किताबें आई. पिछले साल कम आई थी.
जाने-पहचाने कवियों की किताबें आई कुछ चुपचाप कवियों की भी. प्रकृति करगेती का
पहला कवि...
ग़ज़ल - इस लम्हे का हुस्न यही है
-
आँखों में फ़रयाद नहीं है
यानी दिल बर्बाद नहीं है
मुझ को छोड़ गई है गुमसुम
ये तो तेरी याद नहीं है
तुम बिन मुरझाये से हम हैं
जैसे पानी खाद नहीं है
इस लम्हे...
-
रघुवर दास के नाम :
जीप हर मोड़ पे गुजरती है
हर तरफ फौज़ गश्त करती है
अपनी पोशाक में
सत्ता के सब घमंड लिए
मशीनगन की मैगजिन में
झारखंड लिए
तुम्हारे वास्ते
हो...
-
लड़की वक़्त को कलाई पर बांधती है
और घर से निकलती है
उसे बताया गया था बार-बार कि
धरती गोल है
पर वो याद नहीं रखती
वो थोड़ी दूर चलती है
सबकी नज़रों से बचती है...
सर्प-दंश -जागरूकता
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मंगलवार की शाम चार बजे खबर मिलती है कि मेरे पड़ोसी गांव बख्शा निवासी पंडित
लक्ष्मी उपाध्याय को सबेरे किसी विषधर सर्प ने काट लिया,जिला अस्पताल में
भर्ती ...
बुलाकी साव की नौवीं कविता
-
खाजासराय (लहेरियासराय, दरभंगा) में एक मिडिल स्कूल है, जहां मेरी बहन पढ़ती
थी। मेरे गांव से उस स्कूल की दूरी लगभग दो किलोमीटर है। गांव से बहन अपनी
सहेलियो...
चुस्सू, दोतीनपांच और गंगा की सौगंध
-
लफत्तू की तबीयत सुधर रही थी और उसके परिवार के साथ उसके रिश्ते भी. यहाँ तक
कि उसका जल्लाद भाई भी यदा-कदा उसकी मिजाजपुर्सी में लगा दिख जाया करता. मुझे
और पू...
सबद पर दस नई कविताएं
-
दस नई कविताएं *सबद* पर प्रकाशित हुई हैं. उनमें से एक नीचे है.
सारी कविताओं को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
*व्युत्पत्तिशास्त्र*
एक था चकवा. एक थ...
मेला
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मैंने वो चक्रधरपुर में लगने वाले सालाना मेले से खरीदी थी. दो लीवर लगे हुए
थे उसमें. बाएं वाले लीवर को दबाओ तो पीछे के दोनों पाँव झुक जाते थे, मानो
बैठ कर ख...
प्रार्थना – 4 / सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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प्रार्थना – 4 यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे जब हारा हूं तब न आइए। वज्र
गिराओ जब-जब तुम मैं खड़ा रहूं यदि सीना ताने नर्क अग्नि में मुझे डाल दो फिर
भी जिऊं...
क्या सितम है कि हम लोग मर जायेंगे.
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*कितनी दिलकश हो तुम,कितना दिलजू हूँ मैं,*
*क्या सितम है कि हम लोग मर जायेंगे. *
सुबह 6 बजे से यह शेर गूँज रहा है दिल-ओ-ज़ेहन में.
अम्मा और मौसी यूँ किसी...
कुछ खयाल
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चाय के कप से भाप उठ रही है। एक गर्म गर्म तरल मिश्रण जो अभी अभी केतली से
उतार कर इस कप में छानी गई है, यह एक प्रतीक्षा है, अकुलाहट है और मिलन भी।
गले लगने...
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पाला-पोसा उम्र-भर रक्खा दिल के पास
अब बूढ़े माँ-बाप का वृद्धाश्रम में वास
paala.posaa umr.bhar, rakkha dil ke paas
ab boodhe maa-baap ka vriddhaashram me v...
धीरे-धीरे से मेरी ज़िन्दगी में आना...
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Dheere dheere se meri zindagi me aana
(A cover song by Shambhavi Chaturvedi)
Credits goes to its original composer,lyricist and singer.
Music support in thi...
ऐंवे ही
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From : abstract-art-02.jpg
किस बात की खीज है तुमको?
क्यूँ चिढ़े से रहते हो?
इसलिए कि कोई तुमसे बढ़कर है
या इस लिए कि तुम कमतर हो किसी से
या इसलिए कि...
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*पेस्ट या फॉरवर्ड *
*चुराया हुआ ज्ञान *
*चुराए हुए शब्द *
*चुराया हुआ कथ्य *
*चुराई हुई सम्वेदनाये*
*चुराए हुए विचार *
*चुराई हुई भावुकता *
*सब कुछ स...
वक़्त इरेज़र है तो परमानेंट मार्कर भी ।
-
लाख कोशिशों के बावजूद भी आगरा की वो सरकारी पुलिस कॉलोनी मेरे ज़ेहन से नहीं
जाती । और उस कॉलोनी का क्वार्टर नंबर सी-75 मेरे बचपन रुपी डायरी के हर पन्ने
पर द...
स्मार्ट फोन की तितली में तितलियों से ज़्यादा रंग हैं
-
चूक गया हूँ
बहुत बड़े मार्जिन से
मैंने कोई ऐसी स्त्री तो नहीं देखी
जिसे दिल तोड़ने की मशीन कहा जाता है
मगर मैं जानता हूँ एक ऐसे शख्स को
जिसे आप उम्मीद तोड़ने क...
-
दुख
एक
कुछ दुख बेहद बोलते हुए होते हैं
कुछ छूट जाने का दुख
कुछ प्राप्त न कर पाने का दुख
कभी-कभी अपमान सहने का दुख
और इस पर भी चुप रहने का दुख
कभी-कभी दूसर...
चिट्ठियें दर्द फ़िराक़ वालियें
-
*गेब्रियल गरसिआ मार्क्वेज़ के उपन्यास "क्रॉनिकल ऑफ़ ए डेथ फोरटोल्ड" के
कुछ अंश......*
वह जैसे दोबारा जी उठी थी। वह मुझे बताती है "मैं उसके लिए पागल हो ...
थोड़ी फुर्सत मिली तो थी
-
फुर्सत मिली तो थी
सोचा थोड़ा ये कर लूं
थोड़ा वो कर लूं
सुस्ता लूं
किसी संगीत का आनंद ले लूं
किसी कोमल धुन को याद कर लूं
किसी मनोरम दृश्य को याद कर लूं
इस एका...
प्रेम में मैं एक रिरयाती स्त्री हूं।
-
शहर के आखिरी सरहद पर लगा कूड़ादान मेरे पश्चाताप का ढे़र है। रोज़ कई वाहन ढ़ेर
सारा अफसोस वहां और जमावड़ा लगा आते हैं।
प्रेमचंद सही आदमी थे। लेखन संबंधी दायि...
गाँव की याद
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व्यस्त रहे कामों में, फिर भी नहीं आज तक भूले,
आम तोड़ कर तुम मुझसे कहती थीं, 'पहले तू ले!'
क्या अब भी हैं खेल वही, 'छू सकती है, तो छू ले!'
लिखना, अब के बरस,...
On National Science Day 2015
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*आपतन, जापतन और विज्ञान की भाषा*
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विज्ञान का ताल्लुक अनुभव जन्य ज्ञान से है और भाषा ज्ञा...
आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं...
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आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं..
अपना गुज़रा हुआ कल अभी ज़्यादा पीछे नहीं गया है
फिर उसी सिफ़र से शुरू करते हैं
नाम-रंग-जाति-धर्म हर कुछ
जिन-जिन का व...
मछली का नाम मार्गरेटा..!!
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मछली का नाम मार्गरेटा..
यूँ तो मछली का नाम गुडिया पिंकी विमली शब्बो कुछ भी हो सकता था लेकिन मालकिन
को मार्गरेटा नाम बहुत पसंद था.. मालकिन मुझे अलबत्ता झल...
अस्ताभ-व्यस्ताभ
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भरे एक सिरे से और बहुत दिन पहले से सिरफिरा नेपथ्य में वर्तमान
शीर्षस्थ जो भी था उसका जैसा भी था संकुचित दिनमान
अनुमानित संभावनाओं का मानक मारीच जाली सामा...
उसने उंगलियों पर गिनी चीजें
-
उसने उंगलियों पर गिनी चीजें। और एक और झोंका आया, धड़ से बजी खिड़की। बाल
लहरा गए हवा में, उसने अपनी छाया देखी काँच पर। बालों की भी छाया। उसने एक घर
देखा साम...
मेट्रीमोनियल वाली झूठी लड़की
-
ये कई साल पहले की बात है। दो लड़कियां थीं। एक ब्वॉयफ्रेंड वाली, एक
मेट्रीमोनियल वाली।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की 24 साल की थी और मेट्रीमोनियल वाली 34 की। ...
यमन
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*राग यमन *
*संक्षिप्त परिचय *
थाट - कल्याण
जाति - सम्पूर्ण
वादी - गंधार
संवादी - निषाद
तीव्र स्वर - मध्यम बाक़ी सभी स्वर शुद्ध
समय - रात्रि का प्रथम प...
तुम्हारे लिये!!
-
मैं लिखना चाहता हूँ...
एक बेहद सरल कविता
इतनी सरल
जितना, सरल लिखना
स-र-ल
इतनी सरल कि
मैं अपनी जीवन की कठिनाइयों
के साथ भी, जब उस कविता की सानिध्य में ज...
नहीं रहे लोक कथाओं के किस्सागो
-
राजस्थान की लोक कथाओं को नए सिरे से लिखकर कर उनमें समकालीन चेतना और
आधुनिकता का बीज रोपने वाले अनूठे कथाकार विजयदान देथा का रविवार को दिल का
दौरा पडऩे से ...
-
कल जब अस्पताल में हम वेटिंग-लिस्ट में थे तो एक हाल नजर आया जहां हिंदी में
योग और इंग्लिश में YOGA लिखा था, मैं उत्सुकतावश उधर को चल पडा पत्नी के
साथ, उधर ...
बदलती दुनिया में महानायक
-
जेम्स बांड हो या 'द डार्क नाइट राइजेज' का बैटमैन, वे बदलते वक्त की
चुनौतियों के सामने थक रहे हैं। महानायकों के गुरूर तोड़ने के लिए सिर्फ आतंकी
हमले काफ...
जैक फोस्टर, तुमने मुझे मरवा दिया
-
जो लोग हिंदी लेखकों से शिकायत करते हैं कि वो उन्हीं घिसे-पिटे पांच छह
विषयों पर कलम चलाते हैं, ट्रैवल नहीं करते, दुनिया नहीं देखते, उन्हें समझना
चाहिए कि...
आवाज़ का ठिकाना
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हिंदी लेखक की आवाज़ उसके लिखे में जिस जगह से सुनाई देती है, वह जगह कौनसी
है? उसकी आवाज़ को कहाँ लोकेट किया जाए? प्रेमचंद की आवाज़ कई जगहों से सुनाई
देती हु...
May You Be
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May the wind be always at your back
And the sunshine warm upon your face
May the rains fall soft upon your field
Until the day we meet again
And the roof ...
मार्क्सवाद के पावन पथ पर...
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दुनिया बड़ी है, आबादी ज्यादा। हर दिन लोग मर रहे हैं। उनके लिए शोकगीत लिखे
जा रहे हैं, संस्मरण छप रहे हैं और संस्थाएं बन रही हैं। ऐसे में धीरेन्द्र
प्रताप ...
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मेरे गीतों का , साज़ बन गयीं हो तुम
हर लब्ज़ की जुबान बन गयीं हो तुम ,
कलम भी चलती है तुम्हारी यादों को लेकर
मेरे बहके क़दमों की पहचान बन गयीं हो तुम...
ख़ामोशी
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ख़ामोशी
महेंदर कुमार वैद दिल्ली
मैत्री(अभिवियक्ति) पत्रिका २००६ नाशिक से प्रकाशित.
ख़ामोशी अँधेरे मई पसरी हुई थी!
इंतज़ार मे पति के पत्नी ड्योडी पर खड़ी थी!...
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*सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के विकास की जीवन-रेखा :ऋण गारंटी योजना
(सीजीएस) तथा ऋण गारंटी न्यास फंड (सीजीएफटी)*
एमएसएमई आज भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़...
पापा क्या हो पा ?
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*("पापा क्या हो पा" *
*ये वाक्यांश किसी भी भाषा में नहीं है, पर ये अपने आप गढ़ा हुआ भी नहीं. बस
इतना जान लीजिये कि इसका अर्थ "पापा क्या होते हैं? बोलो तो ज़...
आज के हालत-ए-हाजरा पर यादवेन्द्र का नजरिया
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वह समय अभी अच्छी तरह से बीता हुआ भी नहीं माना जा सकता जब मिस्र की सड़कों
पर...मुख्य तौर पर दिल्ली के जंतर मंतर या रामलीला मैदान की तरह ही राजधानी
काहिरा के ...
दबे पाँव
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शेरजंग की शानदार किताब 'मैं घुमक्कड़ वनों का' पढ़ने के बाद उनकी दूसरी
किताबों को पढ़ने की भूख लिए-लिए जब मैं मित्र बोधि के घर पहुँचा तो मेरी नज़र
उनके ख़...
विरक्ति
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जब तुम विरक्त हुए
तुम्हारे भीतर इस अहसास के लिए
जगह बनाना मुमकिन नहीं रहा होगा
कि तुम विरक्त हो रहे हो
बाद में परिभाषित हुआ होगा कि तुम विरक्त हो
अकेलेप...
भवरी जैसे कुछ और भवंर
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*अकेली चिड़िया को जंगल में *
*उड़ने की ख्वाहिश हुई *
*पर्वत श्रृंखलाओं को*
*घर की दीवारों पर टांगने की ख्वाहिश हुई ..*
*गहन गह्वरों से उसे सपनों की आहट हुई ...
...काश ये दुनिया तीन घंटे की फिल्म होती
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सौ सवाल हैं। प्रकाश झा ने इनके जवाब भी दिए हैं...अपनी नई विवादित फिल्म
आरक्षण के जरिए। बहस भी उनने छेड़ी है और इस बहस का सकारात्मक उपसंहार भी
उन्होंने ह...
भविष्य
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उस दिन आफिस में मुहर्रम की छुट्टी थी। सर्दी के मौसम में सूरज देवता की पूरी
मेहरबानी होने का मतलब है, कुछ मूँगफलियों हों, रेवड़ी-गुड़, खुला आसमान और
थोड़ी-स...
फिर मिलेंगे
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*मित्रों, एकाएक मेरा विलगाव आपलोगों को नागवार लग रहा है, किन्तु शायद आपको
यह पता नहीं है की मैं पिछले कई महीनो से जीवन के लिए मृत्यु से जूझ रही हूँ ।
अचानक...
गेहूं की अधपकी बालियाँ
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सुबह से बारिश हो रही है. आज रह रह कर बहुत दिल कर रहा था के कुछ लिखूं. पर
एक अरसे से मैंने कुछ नहीं लिखा है....कुछ भी नहीं. पता नहीं मेरे साथ ये
क्यूँ हो...
रामदेव योग का मदारी है
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कलियुग का तथाकथित योगी सात दिन का उपवास नहीं सहन कर सका. हालत बिगड़ गयी.
अस्पताल पहुंच गया. सेलाइन और ग्लूकोज लेना शुरू कर देता है. उसके भक्त अभी भी
ढिंढ...
वो आसमान था और सर झुकाए बैठा था .
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हिंदी सिनेमा के शलाका पुरुष सचिन भौमिक नहीं रहे श्रद्धांजलि. ये विडम्बना
ही है की उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार नहीं मिला हलाकि उन्होंने जितनी
फिल्मे...
देखते है - नाच
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(अज्ञेय की कविता ' नाच ' पर एक बतकही.)
एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ।
जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ
वह दो खम्भों के बीच है।
रस्सी पर मैं जो...
मां : कुछ कविताएं
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* मां*
*एक*
मां के सपने घेंघियाते रहे
जांत की तरह
पिसते रहे अन्न
बनती रही मक्के की गोल-गोल रोटियां
और मां सदियों
एक भयानक गोलाई में
चुपचाप रेंगती रही...
*...
नदी मतलब शोक-गीत
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(प्रो 0 हेतुकर झा के लिए )
आखिर किस चीज से बनती है नदी?
वह पृथ्वी की आग से बनती है
या किसी नक्षत्र की मनोकामना से?
वह पैदा होती है ॠषियों के श्राप से अ...
भीगी शाम
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उस दिन किसी बात पर खिलखिला के हँसी थी मैं...कैम्पस में हरी दूब पर बैठे हम
कुछ तो सपने बुन रहे होंगे, वो अपने सपनो में यकीन करने के दिन भी तो थे.
तुमने कहा ...
दुनिया, नियो फासिज़्म की ज़द में
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*जोहांसबर्ग से लन्दन के बीच की बी ऐ की एक फ्लाईट के दौरान एक श्वेत महिला
यात्री ने परिचारिका ने शिकायत की "आपने सीट देते समय वास्तव में कुछ भी ध्यान
नहीं द...
इच्छा़
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तुम बैठो कुर्सी पर आराम से टेक लगाकर
मैं बैठूँ पैरों के पास
और अपना सिर तुम्हारे घुटनों पर रख लूँ
तुम्हारे घुटने जिस रोशनी से चमकते हैं
मैं उस तिलिस्म को...
सबसे अच्छे ख़त
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सबसे अच्छे ख़त वो नहीं होते
जिनकी लिखावट सबसे साफ़ होती है
जिनकी भाषा सबसे खफीफ होती है
वो सबसे अच्छे ख़त नहीं होते
जिनकी लिखावट चाहे गडड-मडड होती है
...
नई ग़ज़ल
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*मेरी एक नई ग़ज़ल*दोस्तों,
उर्दू वर्ल्ड वेबसाइट पर हाल ही तरही ग़ज़ल मुक़ाबला शुरू किया गया है. इसमें
जनाब फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के मिसरे 'बहुत जानी हुई सूरत भी पहचा...
विरासत का भार
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वाद-विवाद-संवाद गोष्ठियों में
अपनी संकटग्रस्त आस्था के लिए
तर्क-वितर्क-सतर्क बहसों की गिरफत में
घुट कर
जब लौटता हूं घर-
अपने अन्तरकक्ष में,
म...
किताबें बचेंगी तो पढ़ना बचेगा, लिखना भी
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कई समय से मन था कि कोई ऐसी जगह बने जहां हिंदी किताबों के बारे में नये सिरे
से बात हो सके. अगर किताबें होंगी तो लिखना और पढ़ना भी बचा रहेगा. हमारी ये
बातचीत...
फूल
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सवेरे उठा तो फूल खिला था
मैं उससे हौले से बतियाया
उसकी बातों से और
भीनी भीनी गंध से भी
झलकता था साफ-साफ
कि वह बहुत खुश हैं
हालाँकि गमले में पानी डालना...
मछलियाँ
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इस समय
कहाँ होंगी मछलियाँ ?
मैं नहीं देख सकता मछलियों को
पर वे हैं समुद्र के नीले फेनिल जल में
वे कहीं दूर हैं
वे वहाँ भी होंगी
जहाँ मछुआरों की नावें ...
ब्लॉगर पर नई सुविधा- लेबल क्लाउड (label cloud)
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ब्लॉगर सेवा के दस साल पूरे होने के साथ ही चिट्ठाकारों को नई सौगातें मिलने
का सिलसिला शुरू हो गया है। ब्लॉगर संचालित चिट्ठों पर लेबल क्लाउड की
बहुप्रतीक्षित...
लोकतंत्र
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राजस्थानी भाषा के कवि ओम पुरोहित कागद की कविताओं में से एक ॥
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रामलाल
तू गाय जैसा आदमी है
तो घास खा
हम बापडे
श...