कौन सा
अनजाना गीत है वह
जिसे
चैत्र की भीगी भोर में
चुपके से गा देती है
एक ठिगनी, बंजारन चिड़िया
विरही, पत्र-हीन, नग्न वृक्ष
के कानों मे
कि गुलाबी कोंपलों की
सुर्ख लाली दौड़ जाती है
उदास वृक्ष के
शीत से फटे हुए कपोलों पे
और शरमा कर
नये पत्तों का स्निग्ध हरापन
ओढ़ लेता है वृक्ष
खोंस लेता है जूड़े मे
लाल-पीले फूलों की स्मित हँसी
लचकती, पुनर्यौवना शाखाओं को
कंधों पर उठा कर
समुद्यत हो जाता है
उत्तप्त ग्रीष्म के दाह मे
जलने के लिये
क्रोधित सूर्य के कोप से आदग्ध
पथिकों को
आँचल मे शरण देने के लिये
सिर्फ़ बसंत मे जीना
बसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी
वरन्
क्रूर मौसमों के शीत-ताप
सह कर भी
बचाये रखना
थोड़ी सी सुगंध, थोड़ी हरीतिमा
थोड़ी सी आस्था
और
उतनी ही शिद्दत से
बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है
हाँ यही तो गाती है
ठिगनी बंजारन चिड़िया
शायद!
( हिंद-युग्म पर पूर्वप्रकाशित)
सिर्फ़ बसंत मे जीना
ReplyDeleteबसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी
वरन्
क्रूर मौसमों के शीत-ताप
सह कर भी
उतनी ही शिद्दत से
बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है
वाह कितना सुन्दर वसन्त गीत!! प्रकृति का सुन्दर, मोहक चित्रण. शुभकामनायें वसन्त पंचमी कीं.
बहुत सुंदर वसंत गीत है ये ...
ReplyDeleteAntin ka anuchhed jeevan ki philosophy ko behtareen dhang se kah gaya.
ReplyDeleteWaise aapki banjaran chidiya ki tasweer bhi mohak hai.
अत्यंत सुन्दर बसंत-गीत...
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा..
लिखते रहो..
दीदी..
Khoobsoorat bhaav aur shilp hain bhai ji... aise hi likhte rahiye...
ReplyDeleteare haan kalewar bada sundar hai banate kaise hain bataiye jaroor..
Jai Hind...
बहुत खूबसूरत गीत...वाह!!
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteएक ठिगनी ,बंजारन चिड़िया……बहुत खूब्…
ReplyDeleteब्लाग की सज्जा भी बासंती …सुंदर
खूबसूरत बसंत गीत.
ReplyDeleteजहाँ यह गीत अपने शब्द-शिल्प से पाठकों को मंत्र-मुग्ध कर देता है वहीँ एक सन्देश भी देता है कि हमें कठिन दौर में भी हताश नहीं होना चाहिए.
किसी बड़े साहित्यकार ने लिखा है..
धैर्य हो तो रहो थिर
निकालेगा धुन
समय कोई.
वैसे ही अपूर्व जी कि ठिगनी,बंजारन चिड़िया....विरही, पत्र-हीन, नग्न वृक्ष से कहती है...
सिर्फ़ बसंत मे जीना
बसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी
वरन्
क्रूर मौसमों के शीत-ताप
सह कर भी
उतनी ही शिद्दत से
बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है
..बसंत का ऐसा आवाहन कम ही पढ़ने को मिलता है.
..आभार.
अब तक मुझ द्वारा पढे गए वसंत गीतों में से सबसे सुंदर गीत लगा , एकदम अपूर्व,अनुपम
ReplyDeleteअजय कुमार झा
सिर्फ़ बसंत मे जीना
ReplyDeleteबसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी
वरन्
क्रूर मौसमों के शीत-ताप
सह कर भी
बचाये रखना
थोड़ी सी सुगंध, थोड़ी हरीतिमा
थोड़ी सी आस्था
और
उतनी ही शिद्दत से
बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है
bahut sundr rachna.
स्वागत है बसंत तुम्हारा !!!
ReplyDeleteसिर्फ़ बसंत मे जीना
ReplyDeleteबसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी ...
क्या बात कही है अपूर्व जी .......... सही है कोमलता, मीठे को ही जीना जिंदगी नही है ....... शरद और ग्रीस्म को भी बसंत की तरह जीने का नाम जीवन है ...
बसंत के उपलक्ष में आपकी रचना नये द्वार खोल रही है ........ बेहतरीन रचना .... आपको बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकमनाएँ .......
उत्तप्त ग्रीष्म के दाह मे
ReplyDeleteजलने के लिये
क्रोधित सूर्य के कोप से आदग्ध
पथिकों को
आँचल मे शरण देने के लिये
पूरा बसंत अपने ब्लॉग पर ही समेत लाये गुरु... शानदार साज-सज्जा... कहाँ से ऐसे टेम्पलेट मिलते है बंधू.. जरा इस टेक्निकली कमजोर को भी बताया जाये... हाँ कल हिंदुस्तान में एक बसंती तस्वीर आई थी..., सरसों के फूल खिले थे और एक भँवरा उसपर लैंडिंग करने की कोशिश कर रहा था... नीचे लिखा था... "हालाँकि ठंढ है और कुहासा भी पर भँवरा कह रहा है की वसंत आ गया है"
और सारे छांटे हुए ब्लॉग लिंक यहाँ मौजूद है... अद्भुत... अब इन बूढी आँखों को ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी .).).)
ReplyDeleteसिर्फ़ बसंत मे जीना
ReplyDeleteबसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी
वरन्
क्रूर मौसमों के शीत-ताप
सह कर भी
बचाये रखना
थोड़ी सी सुगंध, थोड़ी हरीतिमा
थोड़ी सी आस्था
और
उतनी ही शिद्दत से
बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है
ओर चोच में आकाश लिए /.उसे नन्ही चोचो में रोपना ...जिंदगी है ...
ठिगनी, बंजारन चिड़िया बसंत के आने का सन्देश देती है विरही, पत्र-हीन, नग्न वृक्ष को
ReplyDeleteकोहरा छाया है हालाकि अभी भी,
सूरज झांकता है,बादलो के पीछे से कभी कभी.
मौसम करवट बदलना चाहता है.
हवा के झोंको से उलझती है गुलाब की झाड़िया भी.
ऐसे में ठिगनी, बंजारन चिड़िया ने मुरझाये पौधो के कानो में कहा.
अब तो नये पत्ते आ ही जाये.
अभी Comment क्या करूँ समझ नही आ रहा . बाद मैं फिर करूँगा . ब्लॉग की नई टेम्पलेट अच्छी है...
ReplyDeletesabse pahle - aapka yah naya page behad aakarshak he.../
ReplyDeletedekhiye, jis tarah aapki poorva prakashit rachna fir se post karne ke baad bhi apna bhav, apna ras banaye hue he thik vese hi yah prakarti bhi he, jisme aanaa, jaanaa, aanaa fir fir aanaa,, yahi kram apne tamaam bhavo ke saath banaa rahtaa he..thik aapki us chidiya ki tarah..., behtar rachna he, utkrasht lekhani he. jo aapke saahityik gyaan ko sahaj hi prakat kar deti he..
हाँ, बिलकुल सही गाती है ठिगनी बंजारन चिड़िया....
ReplyDeleteदरअसल वसंत और कुछ नहीं, जिंदगी के पतझड़ों को कोंपलों के आस में काटना है...
अच्छा! नहीं बहुत अच्छा. ऋतुराज के स्वागत में लिखी गयी कुछ श्रेष्ठ रचनाओं में से एक. फुल मार्क्स.
ReplyDeleteदिल हुआ बसन्त जब यह बसंती लफ्ज़ यूँ पढने को आये ...मोहित कर दिया आपके लिखे लफ़्ज़ों ने शुक्रिया
ReplyDeleteसुंदर रचना कोहरे और बर्फ को चीर कर ले आई है वसंत खिड़की पर ..
ReplyDeleteसिर्फ़ बसंत मे जीना
ReplyDeleteबसंत को जीना
ही तो नही है जिंदगी
वरन्
क्रूर मौसमों के शीत-ताप
सह कर भी
बचाये रखना
थोड़ी सी सुगंध, थोड़ी हरीतिमा
थोड़ी सी आस्था
और
उतनी ही शिद्दत से
बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है
गुमशुदा चीजो का नशा अभी कहाँ उतरा है की आपने एक नया बिम्ब सामने रख दिया...ठिगनी बंजारन चिड़िया के गीत बहुत प्रेरणा दायक है.एक दर्शन ,एक गहरापन लिए हुए है आपकी रचना...सही ही तो है अगर दिल से लिखे तो शब्द कविता बन जाते है.आभार!
Bahut hi sundar abhivyakti hai..!!
ReplyDeletebasant ki hi tarah rachna bhi ati sundar..
ReplyDeleteअद्भुत.
ReplyDeleteचीनी कवि पाई चुई (772 - 846 ई.) की स्मृति हो आई. मैंने उनकी कविताओं का हिंदी अनुवाद साल 91 में पढ़ा था. एक कविता मैंने नोट कर ली थी उसे भेजता हूँ मेल से.
वाह ,,, बसंत का आना !
ReplyDeleteमाहौल में आना !
तदन्तर कविता में आना !
यहाँ सबने अपने अपने नेत्र-रंग से रंगा इसे !
पर ऋतु का कटोरा सबको भरमाता ही रहा !
मित्र !
पंक्तियों में कैसे सिमेटेगा कोई कवि , बासंती-वैभव !
फिर भी ,,, 'केसव कहि न जाय का कहिये ' !
.
.
'' हाँ यही तो गाती है
ठिगनी बंजारन चिड़िया
शायद! ''
--- यहाँ 'शायद' का आ जाना कितना यथार्थ है न !
आभार मित्र !!!
अपूर्व भाई..कमाल का लिखते हैं आप. आपकी ढेर सारी कविताएँ पहले भी हिंद-युग्म पर पढ़ी थी और आज आपके ब्लॉग पर और भी प्यारी कविताएँ पढ़ कर मजा आ गया. हिंदी कविता की नयी पीढ़ी में आप अपना एक अलग मुकाम हासिल करेंगे, ये मेरी आशा भी है और दुआ भी...यूँ ही लगे रहे..लिखते रहे..
ReplyDeleteगुरु, चेला बनाओगे मुझे?
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर बसंत-गीत।
ReplyDeletebahut sunder varnan kiya hai aapne..... Badhai
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
वाह बहुत ही सुन्दर रचना ! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDelete"बसंत को जीना ही तो नही है जिंदगी/वरन् क्रूर मौसमों के शीत-ताप सह कर भी बचाये रखना/थोड़ी सी सुगंध, थोड़ी हरीतिमा
ReplyDeleteथोड़ी सी आस्था और / उतनी ही शिद्दत से बसंत का इंतजार करना
भी तो जिंदगी है..."
क्या बात कही है अपूर्व प्यारे! ब्लौग का नया बासंती कलेवर तो नयनाभिराम है ही और ये खास कविता भी मौकानुकूल...
ठिगनी बंजारन चिड़िया के मार्फ्त पूरी बंसत की कहानी अच्छी लगी..
हॉं सारे मौसम सहे जाऍंगे बसंत के इंतजार के लिए ।
ReplyDeleteसुंदर ।
यूँ कि, ठिगनी, बंजारन चिड़िया ने प्रेम का प्रथम फल रख दिया हो पेड़ के मुख में, और 'लज्जा' के हार्मोन्स बनने लग गए हों तुरंत ही. ये बसंत है या पेड़ का सालाना 'श्रृष्टि-प्रारब्ध?'
ReplyDeleteयूँ कि, अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना.
हाँ पर यूँ भी कि, "कभी कभी (बल्कि हमेशा) मंजिल से ज़्यादा लज्ज़त (मज़ा नहीं क्यूंकि वो ज़्यादा +ive है) उसके इंतज़ार में और उस तक पहुँचने में किये गए efforts में भी होता है और ये वहाँ पहुँच के ज़्यादा पता चलता है. और दूसरी बात 'We don't have any options' क्यूंकि मंजिल एक point hai और रास्ता एक continuous process.
हाँ बसंत आ तो रहा है ।
ReplyDeleteएक ठिगनी, बंजारन चिड़िया
ReplyDeleteवाह क्या बात है,,
bahut accha lika hai aapne, aapke blog per paheli bar aayi hun accha lagi aapki rachnaye, or subse accha aapka "Introdution" jo meri life se milta huya hai, shi kha aapne yado ki chader hi odhni padti hai.........vo sare spne jo kuch pure huye or kuch nhi huye main abhi bhi jeena chahti hun unke sath lekin jee nhi pati, phir se kyo nhi jee skti main apne un sunehre spno ke sath..........?
ReplyDeletepriy apurva ji
ReplyDelete, Bahut khoob,ab tak ki basant ki geeton ki sundar rachanao me sarvashreshth rachana.....
poonam
... उम्दा ..... बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteApoorv,
ReplyDeleteAapki kavitayein wakai bahur saadgi se bhari aur achchi hain...
"Gumshuda Cheezon ke Prati.." ke baad ye kavita bhi kaafi achchi lagi...
Aap logon ki dekha dekhi maine bhi kuch prayasa kiye hain kavya lekhan main.. Kabhi fursat mile to zaruur padhiyega aur rai dijiyega..
http://ashishcogitations.blogspot.com/
Sahi to hai... jo patjhad se ladega wahi to basant k geet sunega... jhoolon ki peengein naapega...
ReplyDeleteकंधों पर उठा कर
ReplyDeleteसमुद्यत हो जाता है
उत्तप्त ग्रीष्म के दाह मे
जलने के लिये
क्रोधित सूर्य के कोप से आदग्ध
पथिकों को
आँचल मे शरण देने के लिये
सच कहूँ अपूर्व जी ....इसे कहते हैं कविता .....आज तो क्या है दो चार पंक्तियाँ इधर उधर से उठाई और बन गई कविता .....कोई अर्थ निकले या न निकले .... हमारी बला से ....!!
ठिगनी, बंजारन चिड़िया बसंत के आने का सन्देश देती है विरही, पत्र-हीन, नग्न वृक्ष को
ReplyDeleteकोहरा छाया है हालाकि अभी भी,
सूरज झांकता है,बादलो के पीछे से कभी कभी.
मौसम करवट बदलना चाहता है.
हवा के झोंको से उलझती है गुलाब की झाड़िया भी.
ऐसे में ठिगनी, बंजारन चिड़िया ने मुरझाये पौधो के कानो में कहा.
अब तो नये पत्ते आ ही जाये.
नये पत्तों का स्निग्ध हरापन
ReplyDeleteओढ़ लेता है वृक्ष
खोंस लेता है जूड़े मे
लाल-पीले फूलों की स्मित हँसी
लचकती, पुनर्यौवना शाखाओं को
कंधों पर उठा कर
समुद्यत हो जाता है
उत्तप्त ग्रीष्म के दाह मे
जलने के लिये
क्रोधित सूर्य के कोप से आदग्ध
पथिकों को
आँचल मे शरण देने के लिये
ab kya kaha jaaye... bas padha jaaye
Maun bahut awaj karta hai kabhi kabhi