तो इस बार पेश-ए-नज़र है एक युवा और बेहद प्रतिभाशाली शायर अज़मल हुसैन खान ’माहक’ की एक खूबसूरत ग़ज़ल।
लख्ननऊ मे रहने वाले अज़मल साहब पेशे से फीजिओथेरिपिस्ट हैं और साहित्य से खासा जुड़ाव रखते हैं। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा उर्दू और फ़ारसी पर अधिकार रखने के साथ इनका संस्कृत, अरबी व अन्य भाषाओं के प्रति भी रुझान है। मेरी खुशकिस्मती रही कि वो मेरे सहपाठी और बेहद अजीज दोस्त रहे हैं। स्वभाव से बेहद विनम्र और शर्मीले से अज़मल साहब अक्सर अपने लेखन को सार्वजनिक करने से बचते रहे हैं, मगर ब्लॉग जगत पर उनकी ताजी आमद के बाद मैं उम्मीद करता हूँ कि उनके ब्लॉग मेरी नज़र पर हमें कुछ नया और अच्छा पढ़ने को मिलता रहेगा।
फ़िलहाल प्रस्तुत है उनकी कलम की एक बानगी देती यह ग़ज़ल जो मुश्किल वक्त के मुकाबिल जिंदगी की उम्मीदों भरी परवाज को स्वर देती है और ज़ेहन पर लगे डर, संशय और के जालों को हटा कर एक रोशनी से भरी सकारात्मकता का आह्वान करती है।
एक नया अहद चलो आज उठाया जाये
दिल के छालों को न अब दिल मे दबाया जाये ।
लाख जुल्मात सही अब कोई परवाह नहीं
जो है दर-परदा उसे सब को दिखाया जाये ।
अपने जज़्बो को मुसलसल मसल के देख लिया
अब जो है दिल में ज़माने को बताया जाये ।
दिल जो ग़मगीन तरानों से था आलूदा
उसके पन्नो पे नया गीत सज़ाया जाये ।
ज़ब्त करते हुये हम आ गये थे दूर बहुत
इक नई राह पे अब ख़ुद को बढ़ाया जाये ।
बेसबब दी नहीं माबूद ने सांसे ’माहक’
फिर तो लाज़िम है कि ये कर्ज़ चुकाया जाये ।
(अहद- प्रतिज्ञा, वादा; दर-पर्दा- पर्दे के अंदर, मुसलसल- निरंतर; आलूदा- लिप्त; माबूद- ईश्वर)
फ़िरदौस ख़ान : लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी
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फ़िरदौस ख़ान को लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से जाना जाता है. वे शायरा,
लेखिका और पत्रकार हैं. वे एक आलिमा भी हैं. वे रूहानियत में यक़ीन रखती हैं और
सूफ़...
1 day ago
आज हमने एक साथ कुछ पब्लिश किया है
ReplyDeleteग़ज़ल खूबसूरत है, मगर खुद किस दुनिया में गुम हो ? किससे नाराजगी है कि अपनी कविताएं इस तरह छिपा के रखते हो ?
nice
ReplyDeleteमक्ते का शेर तो बहुंत अच्छा है ही मगर यह शेर तो लाज़वाब है-
ReplyDeleteज़ब्त करते हुये हम आ गये थे दूर बहुत
इक नई राह पे अब ख़ुद को बढ़ाया जाये ।
-अजमल हुसैन खान से परिचय कराने के लिए आभार।मक्ते का शेर तो बहुंत अच्छा है ही मगर यह शेर तो लाज़वाब है-
ज़ब्त करते हुये हम आ गये थे दूर बहुत
इक नई राह पे अब ख़ुद को बढ़ाया जाये ।
-अजमल हुसैन खान से परिचय कराने के लिए आभार।
-नंदनी जी के प्रश्न का ज़वाब दीजिए।
अज़मल साहब को पढ़कर आनन्द आया. आपका बहुत आभार इसे प्रस्तुत करने का.
ReplyDeleteवाह,बहुत ही खूबसूरत.
ReplyDeleteयूँ कि मज़ा आ गया
ReplyDeleteचलो अभी उनके ब्लॉग पर चलते हैं
इसे किस मीटर पर पढूं
ReplyDeleteघर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये :)
बेसबब दी नहीं माबूद ने सांसे ’माहक’
ReplyDeleteफिर तो लाज़िम है कि ये कर्ज़ चुकाया जाये ।
. ये शेर पसंद आया
.कुछ ख्याल गध में लिखो किसी शनिवार की रात .भले ही बॉस को गाली देते हुए .यक़ीनन दिलचस्प होगा ....
ये दो अशआर खासतौर से पसंद आए
ReplyDeleteएक नया अहद चलो आज उठाया जाये
दिल के छालों को न अब दिल मे दबाया जाये ।
लाख जुल्मात सही अब कोई परवाह नहीं
जो है दर-परदा उसे सब को दिखाया जाये ।
जो देखते हैं सपना वे 'मेरी नजर' से
ReplyDeleteगुजारिश मेरी भी है कि गौर फरमाया जाए.
नंदनी की बात से मैं भी ताल्लुकात रखता हूँ
अपना लिखा कब लाओगे बर्खुरदार..! अस्सी वेट कर रिया सी..
ReplyDeleteग़ज़ल बढ़िया है.. और अनुराग जी वाली रिक्वेस्ट हम भी फेंक रहे है.. कुछ प्रोज व्रोज हो जाये मियां..
APPORV JI
ReplyDeleteअजमल जी की खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हजारों दाद आपको इतनी प्यारी ग़ज़ल पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया.......!
एक नया अहद चलो आज उठाया जाये
दिल के छालों को न अब दिल मे दबाया जाये ।
क्या शानदार मतला है......
लाख जुल्मात सही अब कोई परवाह नहीं
जो है दर-परदा उसे सब को दिखाया जाये ।
अजमल के हौसलों को सलाम.....
अपने जज़्बो को मुसलसल मसल के देख लिया
अब जो है दिल में ज़माने को बताया जाये ।
वो तो आप कह ही रहे हैं......
अपने जज़्बो को मुसलसल मसल के देख लिया
ReplyDeleteअब जो है दिल में ज़माने को बताया जाये
बेसबब दी नहीं माबूद ने सांसे ’माहक’
फिर तो लाज़िम है कि ये कर्ज़ चुकाया जाये
अच्छे लगे ये अशआर..
ऐसी संगति काश हमें भी नसीब होती :)
ReplyDeleteजा रहा हूँ PR बढ़ाने (इस दफ़्अतन की हवेली से ’माहक’ के घरोंदों तक ...)
ReplyDeleteआप तो घर की दाल हैं. ;)
फिर कभी गुफ़्तगू होगी आपसे.
अजमल हुसैन साहब की लाजवाब ग़ज़ल पढ़ कर दिल को बहुत सुकून मिला ... हर शेर ताज़ा तरीन, नये ज़माने का, नयी सोच का अंदाज़ देता है .....
ReplyDeleteअपने जज़्बो को मुसलसल मसल के देख लिया
अब जो है दिल में ज़माने को बताया जाये
ये सच है अगर अपने दिल को खोल कर न सुनाओ तो ये ज़माना समझता नही है ...
दिल जो ग़मगीन तरानों से था आलूदा
उसके पन्नो पे नया गीत सज़ाया जाये ।
दर्द से निकला गीत दिल की आवाज़ होता है ... इसलिए दर्द गीत बन कर निकले तो बहुत अच्छा ...
बहुत बहुत शुक्रिया अपूर्व जी अजमल साहब से मुलाकात कराने का .... वैसे आपको पढ़े हुवे भी अरसा बीत गया ... कई बार आपके ब्लॉग पर आ कर मायूस हो कर वापस लौट जाता हूँ ...
बेसबब दी नहीं माबूद ने सांसे ’माहक’
ReplyDeleteफिर तो लाज़िम है कि ये कर्ज़ चुकाया जाये.
बहुत गहरी बात है इस शे'र में.जीवन दर्शन यही है,सांसे यूँ ही नहीं दी इश्वर ने.अपने आप में अद्वितीय है.
जैसे फैज़ ,ज़ोक या ग़ालिब को पढ़ रहे हो.
ग़ज़ल में सारे शेर कविता के प्रवाह जैसे चलते है.
ग़ज़ल के नियमो की पाबंदियो में बंध कर भी भाव खोये बिना भाषा की सादगी लिए हुए है.
लाख जुल्मात सही अब कोई परवाह नहीं
जो है दर-परदा उसे सब को दिखाया जाये .
हर बात सादगी से कही गयी है पर अपना कवित्व नहीं खोती.
अपने जज़्बो को मुसलसल मसल के देख लिया
अब जो है दिल में ज़माने को बताया जाये .
मामूली तथ्यों को कुछ इस अंदाज़ से कहा है की यही बातें दिल में गडकर रह जाती है.इन शे'रो की सादगी और असर देखिये..
दिल जो ग़मगीन तरानों से था आलूदा
उसके पन्नो पे नया गीत सज़ाया जाये ।
ज़ब्त करते हुये हम आ गये थे दूर बहुत
इक नई राह पे अब ख़ुद को बढ़ाया जाये ।
बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई हो अब ऐसा करे.
ReplyDeleteकुछ अपना लिखा भी सबको :-) पढ़ाया जाये.
मेरी खुशकिस्मती रही कि वो मेरे बेहद अजीज दोस्त के सहपाठी और बेहद अजीज दोस्त रहे हैं।
ReplyDeleteबेसबब दी नहीं माबूद ने सांसे ’माहक’
फिर तो लाज़िम है कि ये कर्ज़ चुकाया जाये ।
मियां ज़िन्दगी जीने की वजह से Guilty Conscious होने की ज़रूरत नहीं है.
कहीं पढ़ा था...
तुझपे क्या मेरा कुछ कम एहसान है खुदा, जो तेरी दी हुई ज़िन्दगी जी रहा हूँ ? (या ऐसा कुछ!!)
नहीं तो ये साँसों का क़र्ज़ तो हर सांस में बढ़ता चला जाना है. किसी मुनीम के बही खाते की तरह, असल छोड़ो ब्याज ने ही कमर तोड़ दी, एक उम्र कहाँ काफी है?
कोई क्रांति करनी होगी या तो साँसों का कर्ज़ चुका लो, या डाकू बन जाओ, छीन लो सब सासें अपनी मर्ज़ी से जियो...
चलो ना ! वापिस चलते हैं 'उस' मुनीम के पास....
अरे बिटवा. तू आई गवा ! इ ले कबसे संभाल के रखी हैं तेरी सासें.
ज़ब्त करते हुये हम आ गये थे दूर बहुत
इक नई राह पे अब ख़ुद को बढ़ाया जाये ।
सोच लीजिये... क्या यहाँ पर से कोई रास्ता फटता है? या वापिस जाना होगा एहसासों को एक नई शुरुआत देने? "जानी !! इस जब्त-ए-सफ़र में जो एक बार चल निकला वापिस आना मुश्किल है उसका. हमने देखा है तजरुबा करके !!"
दिल जो ग़मगीन तरानों से था आलूदा
उसके पन्नो पे नया गीत सज़ाया जाये ।
http://www.youtube.com/watch?v=-kXtgcbi4nE
अपने जज़्बो को मुसलसल मसल के देख लिया
अब जो है दिल में ज़माने को बताया जाये ।
दोस्त यहाँ तो उल्टा हुआ है...
ज़माने को बता के देखा...
मतलब जो समझे मेरे सन्देश का, इस देश में है क्या कोई मेरे देश का?
लाख जुल्मात सही अब कोई परवाह नहीं
जो है दर-परदा उसे सब को दिखाया जाये ।
हाँ मगर, eve teasing आजकल अपराध है... :)
Jokes apart, कितने नाम है इसके...
"right to know" , "पारदर्शिता", "विश्वास"....
...पर सच !! चीज़ें इतनी ढकी छुपी है कि अपने इस हक (;)) के लिए भी युद्ध स्तर के प्रयासों कि दरकार है, कभी प्रेमिका से, कभी सरकार से, कभी खुदा से...
एक नया अहद चलो आज उठाया जाये
दिल के छालों को न अब दिल मे दबाया जाये ।
मतला बेहतरीन है, और इस शेर की (infect पूरी ग़ज़ल की ही) अगर २ शब्दों में समीक्षा करना हो तो मैं कहूँगा...
Optimist - पलायनवादिता.
PS: मेरे विचार से किसी का सहमत होना मेरे लिए आश्चर्यजनक सुखद संयोग होगा. ये क्रांतिकारी समीक्षा हैं, और क्रांतियों से लोग (और मैं भी) ज़ल्दी सहमत नहीं होते ;) (Status Quo you see)
दिल जो ग़मगीन तरानों से था आलूदा
ReplyDeleteउसके पन्नो पे नया गीत सज़ाया जाये ।
Ye achha laga, baaki samajh nahin aaye!
मैं अब ठिकाने पर पंहुचा हूँ ................उजड़े चमन की तरह तैश खा गया हूँ मैं ...........आज एक बार फिर ..........जिंदा होने ज़िन्दगी की रह पर वापस आ गया हूँ मैं .................
ReplyDeleteBadi hi lajawab gazal se ru-b-ru karaya!
ReplyDeleteएक नया अहद चलो आज उठाया जाये
ReplyDeleteदिल के छालों को न अब दिल मे दबाया जाये ।
वाह ....बहुत सुंदर ....!!
लाख जुल्मात सही अब कोई परवाह नहीं
जो है दर-परदा उसे सब को दिखाया जाये ...
लाजवाब ....!!
शुक्रिया अपूर्व जी इतनी बढिया ग़ज़ल पढवाने के लिए ....!!
उलझन में पड़ गया कि भूमिका की तारीफ़ करूँ कि प्रस्तुत रचना की?
ReplyDeleteनये दोस्त से परिचय करवाने का शुक्रिया अपूर्व...उनकी अन्य रचनायें पढ़ने जा रहा हूँ उनके ब्लौग पर।
वैसे रचना ग़ज़ल की श्रेणी में आने के लिये शिल्प और छंद के तौर पर यकीनन और मेहनत माँगती है।
अच्छी गज़ल है ।
ReplyDeletebhai shukla ji waaaaaaaaaaaaaaaah kya baaaaaaat hai. tusi gret ho bahut sundar good work. pasand aya. padhta rahunga
ReplyDeletepahli baad padha aapko. bahut acchhi gazel. badhayi.
ReplyDeleteआप सब अच्छा लिखते है - क्या कविता , क्या भूमिका , क्या टिप्पणी !
ReplyDeleteअच्छे मोती को खोजा है आपने ; हीरे की पहचान जौहरी को !
मतले से लेकर मकते [तखल्लुस भी ] तक दाद ही निकल रही है !
यूँ तो पुनरुक्ति का प्रभाव है पर वह पुनरुक्ति-दोष की हद तक नहीं जा रहा
है , वह केन्द्रिकता प्रदान कर रहा है और भविष्य में अपेक्षित मंजाव की
संभावना भी ! इसे आशावादी ढंग से ले रहा हूँ मैं ..
अंत में एक बात कहूंगा---
'' दिल से जो बात निकलती है असर रखती है .. ''
Nice I have checked a couple of them. I figure You Should likewise consider making a rundown of Indian named a client I'm seeing great reaction from Indian individuals as well
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