वक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है
मेरी नाकामियों मुबारक हो, बस वो भी पिघल जायेगी
*****
बचपन में, मेले से, लाया था एक मिट्टी की गुल्लक
रोज डालता था कुछ सिक्के, भरता था छोटी सी गुल्लक
भरते-भरते पैसे, जाने कब खाली कर दी उम्र की गुल्लक
*****
कहते हैं सिकुड़ के माउस बराबर रह गयी है बेचारी दुनिया
इंटरनेट, केबल, मोबाइल्स ने खत्म कर दी हैं सारी दूरियाँ
हाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर
*****
(क्षेपक)
बुद्धत्व
वह आवारा कवि
बेचैन हरदम, भावुक
जो पढ़ लेता है कुछ बुरी कविताएं
और उदास हो जाता है
देखता है कुछ बुरे उज़बक ख्वाब
और रो देता है
कैसे समझाऊँ उसे
कि रोना कितना तक़लीफ़देह होता है
और दिल ही दिल मे घुटना
सेहत के लिये कितना नुकसानदायक
कैसे बताऊँ उसे
कि यह जिंदगी भी बस
एक ख्वाब ही तो है;
वो देखता है कुछ मेरी आँखों मे
और फिर उदास हो जाता है
मुंह फ़िरा लेता है
क्या पता है उसे यह सब ?
मगर
मगर अब आँसू मेरी आँखों मे क्यों
या..
शायद टूटने वाली है क्या
मेरी भी नींद ?
( यह पोस्ट हमारे प्यारे दोस्त और बेहद उम्दा कवि दर्पण साहब को समर्पित )
बहुत बढिया रचनाएं।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteबहुत बढिया जी बधाई हो
ReplyDelete:(
ReplyDelete:)
:P
:D
(Ye Kshepak ke liye tha, Treveni-numa ke liye samay chahiyye...)
बचपन में, मेले से, लाया था एक मिट्टी की गुल्लक
ReplyDeleteरोज डालता था कुछ सिक्के, भरता था छोटी सी गुल्लक
भरते-भरते पैसे, जाने कब खाली कर दी उम्र की गुल्लक
*****
कहते हैं सिकुड़ के माउस बराबर रह गयी है बेचारी दुनिया
इंटरनेट, केबल, मोबाइल्स ने खत्म कर दी हैं सारी दूरियाँ
हाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर
अपूर्व,
ब्लाग जगत में कुछ लोग ऐसे हैं जिनको टिपण्णी देने के लिए बड़ी जद्दो-जहद करनी पड़ती है मुझे.....सिर्फ इसलिए की उनका लेखन स्तर इतना ऊँचा है कि मेरी कलम का कद छोटा हो जाता है.....और उनमे से एक तुम हो....पता नहीं ...तुम इतनी कम उम्र में इतने अजीब क्यूँ हो ??? जो भी लिखते हो बस कमाल लिखते हो....और हम जैसे लोग बस अपने छोटे से शब्द संसार में मिक्स एंड मैच करके खाना पूरी करने में उलझ जाते हैं....देखो न इस वक्त भी तो हम वही कर रहे हैं.....और इस चक्कर में ये भी नहीं कह पारहे हैं कि जो भी तुमने लिखा है ....नायाब है शब्दों के जादूगर हो.....एक तुम और एक किशोर जी...अब मेरे शब्द मेरा साथ छोड़ रहे हैं इसलिए तुम्हें आशीर्वाद देकर काम चला रही हूँ....बस ऐसे ही लिखते रहो...
दी...
teen-teen laainon men us bahut kuchh amoort se ko jo ham mahsoos karte hain,shabdon se aapne aakar de diya hai.zabardast nayapan hain inme!
ReplyDeleteत्रिवेणी को समझने के लिये सही मे थोडे से वक्त तो चहिये ...........पर जो आपकी दूसरी रचना है उसे पढकर दिल मे एक टीस पैदा हुई भाई अपूर्व ......इसका असर कुछ ज्यादा देर रहेगा!
ReplyDeleteतेरी पहचान के रैपर्स उड़ा दिये हवा में, हँस कर
ReplyDeleteवक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है
वाह क्या नयी उपमा?
कहते हैं सिकुड़ के माउस बराबर रह गयी है बेचारी दुनिया
इंटरनेट, केबल, मोबाइल्स ने खत्म कर दी हैं सारी दूरियाँ
हाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर
वाह क्या बात है दोनो मे ही नया अन्दाज
वह आवारा कवि
बेचैन हरदम, भावुक
जो पढ़ लेता है कुछ बुरी कविताएं
और उदास हो जाता है
कवि बनता ही वही है जिसकी आँखें नम हों और मन मे कोमल एहसास हों हर एहसास को महसूस करने की भावना हो बहुत अच्छा लिखते हो अगर दर्पण का साथ है तब तो समझो बेदा पार है 16 कला सम्पूरण है मेरा बेटा दर्पण बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
त्रिवेणी अपने सर से निकल गयी बॉस.. इसमें मास्टरी नहीं है... डॉ. अनुराग को मिस कॉल दीजिये... कुछ और लोगों ने भी मास्टरी की है... हाँ बाद वाली में अपना 'हित' दिखाई दे रहा है... और नुक्सान भी... कम्बखत मेरे बाल भी यह्ही वजेह है की झड़ रहे हैं...
ReplyDeleteतेरी पहचान के रैपर्स उड़ा दिये हवा में, हँस कर
ReplyDeleteवक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है
wah bahut khoob...........
हाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर
hahahahaha........... bahut sahi likha apoorv..........
creativity jhalakti hai......... is poori kavita mein.........
GR8
लो जी हमें कॉल मिली .....त्रिवेणी देखकर दिल खुश हो गया .......खास तौर से तीसरी.....सुपर्ब...तुम्हे पढ़कर से दिल को सकूं मिलता है ..गुलज़ार साहब की एक त्रिवेणी याद आ गयी...वो बांट रहा हूँ.
ReplyDelete.
जिस से भी पूछा ठिकाना उसका
इक पता ओर बता जाता है .....
या वो बेघर है ,या हरजाई है
कहते हैं सिकुड़ के माउस बराबर रह गयी है बेचारी दुनिया
ReplyDeleteइंटरनेट, केबल, मोबाइल्स ने खत्म कर दी हैं सारी दूरियाँ
हाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर
...ik lafze mohabbat ka etna sa fsana hai...simte to dile aashiq faile to zmana hai...वो देखता है कुछ मेरी आँखों मे
और फिर उदास हो जाता है
मुंह फ़िरा लेता है
क्या पता है उसे यह सब ?
मगर
मगर अब आँसू मेरी आँखों मे क्यों
या..sehat ke liye nuksandeh hai par jeene ke liye jaroori..es kadar barsi hai unki yaad me aankhe meri jis kadar badal bhi kabhi barsa nahi....der baad likhte hai aap par der tak man pe chhaya rahta hai.....
अब मुझे भी तीसरी समझ में आ गयी गुरु... हाँ गुलज़ार की त्रिवेणी ३ बार में में धीरे-धीरे पढ़ी तो भेजे में समाया...
ReplyDeleteतेरी पहचान के रैपर्स उड़ा दिये हवा में, हँस कर
ReplyDeleteवक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है
वाह !
बहुत उपेक्षित से ,या बहुत परिचित दोनो तरह के बिम्बों पर लिखना कठिन होता है । कुछ बात तो है इनमे ।
ReplyDeletedarpanji ko samatpit rachna..., esa samarpan vakai laazavaab he/ mujhe bahut bhaai/ triveni to darpanji ki pahchaan he/ fir aapka pryaas bhi utanaa hi umda nikalaa/ dono gazab ke kavi ho/ bemisaal rachnakaar/
ReplyDeleteतेरी पहचान के रैपर्स उड़ा दिये हवा में, हँस कर
वक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है
मेरी नाकामियों मुबारक हो, बस वो भी पिघल जायेगी
bs yahi jeevan he, ummid he, saahas he/
बचपन में, मेले से, लाया था एक मिट्टी की गुल्लक
रोज डालता था कुछ सिक्के, भरता था छोटी सी गुल्लक
भरते-भरते पैसे, जाने कब खाली कर दी उम्र की गुल्लक
jeevan ka ek aour roop/ kya achhe dhhang se likh diya..umra peso par arpit ho chali he..
कहते हैं सिकुड़ के माउस बराबर रह गयी है बेचारी दुनिया
इंटरनेट, केबल, मोबाइल्स ने खत्म कर दी हैं सारी दूरियाँ
हाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर
isape sirf DAAD dunga/
jindagi bhi bas ek khvaab hi to he,,, pagal he kavi/ yaa pagal hi hota he jo jeevan ko udhed kar shbdo ke saath kheltaa he, umradaraaz ho jataa he aour ek din...
apoorvji, bahut shaaleenta he rachna me/ fir ek baar kaunga..darpanji ko in shbdo ka samarpan vakai..behad pyaaraa he/
कमाल की त्रिवेणी .......... सब की सब ..अपूर्व जी जीवन के कुछ गहरे सत्य सिमिट आये हैं आपकी त्रिवेणी में ..............
ReplyDeleteअगर कोई रचना पाठक के दिल या दिमाग पर पहली बार मे ही पैठ नही बना पाती है, या कोई एक्स्प्लेनेशन डिमांड करती है, तो यह मैं उस रचना की सम्प्रेषणीयता की असफलता ही कहूँगा. और इस नाते मैं आप सबसे क्षमाप्रार्थी हूँ. शायद त्रिवेणियाँ कुछ उलझाऊ हो गयीं, जिसमे इस खाकसार की कलम के कच्चेपन का ही खालिस हाँथ है.
ReplyDeleteजैसा कि हम जानते हैं त्रिवेणी-विधा प्रातःस्मरणीय गुलज़ार साहब की मानस-पुत्री है. और बकौल उनके शब्दों मे- "बड़ी सीधी सी फॉर्म है, तीन मिसरों की लेकिन इसमें एक जरा-सी घुंडी है। हल्की सी। पहले दो मिसरों में बात पूरी हो जानी चाहिए। गजल के शेर की तरह वह अपने आप में मुकम्मल होती है। तीसरा मिसरा रोशनदान की तरह खुलता है। उसके आने से पहले दो मिसरों के मफ़हूम पर असर पड़ता है। उसके मानी बदल जाते हैं।"
ब्लॉग जगत पर कुछ खतरनाक किस्म के त्रिवेणी-सर्जक मौजूद हैं, जैसे कि आदरणीय अनुराग जी
, और दर्पण आदि.
और जैसा कि आपको अंदाजा हो गया होगा कि यह शब्दों की किफ़ायत और भावों की अमीरी काव्य की मुश्किल विधा है और इसी लिये अनुपम भी.
कुछ एक्स्प्लेनेशन
१). यह वक्त की हेराफेरी और पीठ पर रखे जिंदगी के जुँए की जुगलबन्दी है कि कभी जिसके बिना जीने की कल्पना मे डर लगता था...वक्त कुछ सालों मे उसका नाम भी आपके जेहन से मिटाता जाता है..धीरे-धीरे..टॉफ़ी के घुलने की तरह..!
२). ताजिंदगी हम बैंक-बैलेंस बनाने मे इतने मसरूफ़ हो जाते हैं कि पता ही नही चलता कि हमारी सबसे बड़ी दौलत उम्र, कब खत्म हो गयी, सिक्के बटोरने मे. और पैसों की गुल्लक का पेट हमेशा खाली ही रहता है, सब को पता है. बस निन्यानवे का फेर.
३). बस इतना कि ग्लोबलाइजेशन और आई टी के बूम से दिलों की दूरियाँ कम हो पायी हैं क्या?
वैसे त्रिवेणी मे कुछ और भी मतलब निकाले जा सकते हैं मगर इतना कड़ाके का लिखना मास्टर लोगों के बस की बात है, और यह नाचीज अभी स्टुडेंट है बस..वो भी बैकबेंचर !! ;-)
हाँ सागर साहब, इस उम्र मे बाल झड़ने की सिर्फ़ एक वज़ह होती है, और वो है डैंड्रफ़. ;-) यकीं न हो तो टीवी वाले हेयर एक्सपर्ट से पूछ लें. और उस खास शैम्पू का इस्तमाल करें. ;-)
क्या कहूँ मैं, सबकुछ कमाल का है ।
ReplyDeletekshanikayen jitni jaandaar hain kavita utni hi shandaar Apoorv Bhai..
ReplyDelete"अगर कोई रचना पाठक के दिल या दिमाग पर पहली बार मे ही पैठ नही बना पाती है, या कोई एक्स्प्लेनेशन डिमांड करती है, तो यह मैं उस रचना की सम्प्रेषणीयता की असफलता ही कहूँगा. "
ReplyDeleteAapki is baat se to poori tarah sehmat hoon....
...par apni aatmik santushti ka kya....
...aur Aproov bhai aapne hi ho kaha tha yaar ki aatmik santushti sabse badi baat hoti hai,
kai baar gulzaar sa'ab bhi aisa likhte hai jaise rachna nahi koi 'sabzi ho' mix veg....
...shabdon ka , vakyon ka , yaha tak ki alag alag paragraphs ka koi arth nahi...
... par nazm apne aap main mix veg mukamill....
...chayavaad, Abstract, absurd,Nirala,Gulzar George Eliot,Leo Tolstoy aur William Shakespeare ke bhi udharan doon tumhein?
...isliye bus yahi kahoonga bahi ki aap bahut accha likhte ho....
...dil aur dimag ko saath lekar likhte ho....
....
Likhte raho !!
Abhi to aapke comment pe comment karna zarrori tha, zaldibazi main .
Aur haan, kabhi kabhi comment main kuch aisi baatein ubhar kar aa jati hai jo gaun ho, aur 'core' vishay dhoomil ho jata hai...
isliye iska saar bhi likh doon...
"Aapko treveni explain karne ki koi zarurat nahi thi"
Sab apne aap main ek se ek thi....
Rapper udane wali to chitr banati hui lagi mastishk main....
pata nahi kyun aprasangik roop se wo katra yaad ho aaiya
"Tumhare gum ki dali hoothon main rakh li hai maine dekho.."
ye ye !! i know both have different meanings...
but jehan main aa gaya to kya kar sakte hain !!
doosri treveni ke bhaav behteri the// par terveni ki 'gulzaar' dwara di gyi defination ko satisfy nahi karte...
..Waise gulzar bhagwan bhi nahi !!
haha
Ek tumhare liye, (diwali visheshank):
क्या मेरे अपने अब भी दिवाली मनाते होंगे?
मुझे मालुम कैसे हो वो अपने दूर रहते हैं...
बगल के कमरे में झाँक कर देखूं?
aur haan agar explain hi karna tha to phir poem ya treveni kyun likhi (ye comment pichli post ke explanation ke uppar bhi hai) explanation hi likh dete?
ReplyDeletechutukala sunane ke baad agar koi nahi hansta to badi koft hoti hai....
...maanta hoon !!
par explain karte waqut aur bhi zayada !!
main aapse poochta hoon ki kitno ko samakh main aaiye hogi "Samvedanhinta" aur "rang badlte kharbooj" ya fir "Chapte chapte"?
sach sach batana ?
Par use explain karne ka man nahi hua to nahi hua !!
मेरी नाकामियों मुबारक हो, बस वो भी पिघल जायेगी"
ReplyDeleteपूरी तरह से सम्प्रेषणीय है त्रिवेणियाँ --- सशक्त है
जी हाँ शायद नीद टूटने वाली है.
छोटे छोटे विचारों को कविता का जामा इस तरह पहनाया है कि बात सीधे दिल में उतर गयी। नेटवर्क वाली लाइन तो गजब की है।
ReplyDelete----------
डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
bahut achchhi Triveni
ReplyDeleteअपूर्व जी
ReplyDeleteआपकी त्रिवेनियों में टॉफी ,रेपर,आदि प्रतीकों का प्रयोग से हिंदी कविता में पहली बार सशक्त भावों को अभिव्यक्त करने में किया गया है..बेहद मौलिक और सहज तरीके से आपने भावों की गहराई को बिम्ब दिए है.दर्पण साहब को समर्पित बुद्धत्व पसंद आया.
bahut hi laazwab rachna .dipawali ki dhero badhai .
ReplyDeleteजीवन केगहरे सत्य हैं आपकी त्रिवेणी में
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
*************************************
प्रत्येक सोमवार सुबह 9.00 बजे शामिल
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क्रियेटिव मंच
बहुत खूब! क्या झन्नाटेदार त्रिवेणियां हैं।
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteएक दीप ऐसा भी जला दो, रूह रौशन हो सके !
ReplyDeleteअंधेरों को आये नींद गहरी, और उजाला हो सके !!
सप्रीत, आ.
मित्र मेरी भी बधाई ले लो, थोड़ी देर हो गयी, पर इन पंक्तियों ने मुझे भी मोह लिया है....बधाई....देखो भाई थोड़ा बचा के रहना, तुम्हारी उम्र पर नज़र है..लोगों की.....०० :)
ReplyDeletesundar rachnaen hain...sahaj bhi.
ReplyDeleteहाँ, तेरा दिल ही छूट गया होगा शायद, नेटवर्क कवरेज से बाहर..
ReplyDeletehmmm.....
कैसे समझाऊँ उसे
कि रोना कितना तक़लीफ़देह होता है
और दिल ही दिल मे घुटना
सेहत के लिये कितना नुकसानदायक
कैसे बताऊँ उसे
कि यह जिंदगी भी बस
एक ख्वाब ही तो है;
bahut sundar...
"त्रिवेणी" तो हम अपने "प्रयाग" यानि कि इलाहबाद की ही जानते थे, जो पवित्र, सब को शांति देने वाली और श्रद्धा युक्त है आज भी..
ReplyDeleteपर "गुलज़ार" साहब की "मानस पुत्री" के रूप में जिस "त्रिवेणी" से आपने अपनी टिपण्णी में अवगत कराया , शायद वह विधुत करंट से युक्त बहुत ही झन्नाटेदार है...........
आपकी "त्रिवेणियाँ" ने भी बहुत झटके दिए, अब दिमाग का इलाज हो गया है, स्वस्थ सा महसूस कर रह हूँ.........
हार्दिक आभार आपका.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
Aa jao bhai ab !!
ReplyDeleteEk swarthi blogger ki aawaj bhi suno...
:)
Chalo aaya hoon to diwali ki b'lated badhai bhi de doon !!
Arey! bhai......... Apoorv............. kahan ho aajkal? Tabiyat wagairah to thik hai na.......... ? bilkul bhi nazar nahi aa rahe ho? kya baat hai......?
ReplyDeleteभाई,
ReplyDeleteये चुप-सी क्यों लगी है ? कहीं उदास तो नहीं ?
न हो मन तो न बोलें, kuchh लिखें तो सही..
सप्रीत--आ.
त्रिवेणी सुंदर है साथ ही दर्पण पर रश्क हुआ जाता है.
ReplyDeleteअपुर्व जी
ReplyDeleteकई हफ्तो के बाद जब हमने आपके ब्लोग का चक्कर लगाया तो पाया की आप कही गये हो ...........खैर जहा भी आप जिस काम से गये हो उसमे सफलता पाओ .........फिर देखा मैने अधूरी ही टिप्पणी करी है तो खेद हुआ ............मुझे आपकी रचनाओ को बहुत बार पढने मे मजा आता है क्योकिमेरा यह मानना है कि रचना के आत्मा तक पहुंचने केलिये एक रचनाकार के रचना को कई कोणॉ दे देखा जाये और वह एक जरिया होता है रचनाकार के रच्ना के आत्मा तक सफलता से पहुंचा जा सके ..........इसतरह से मै आपके त्रिवॆंणी का गहरा आन्नद लेकर तब कुछ लिखना चहता था ........अगर कोई व्यक्ति किसी रचना पर टिप्पणी देने मे अक्षम होता है तो इसका मतलब कतई नही होता है कि रचना सम्प्रेषिणिय नही है यहाँ पाठक की भी असफलता भी हो सकती है .....सो आपकी रचना मे दम होती है जैसा कि आपकी टिप्पणी भी उअतनी ही दमदार होती है .........आपके ज्ञान के भंडार का भी मै कायल हूँ ......आपकी रचनाओ से सम्भावनाये भी बहुत है लेखन के क्षेत्र मे ......
अरे, मेरी पिछली टिप्पणी कहां गयी?
ReplyDeleteमैं तो यूं आ गया था तुम्हारा लिखा फिर से टटोलने...जाने कहाँ गयी जो अभी हफ़्ते पहले मैंने कुछ लिखा था तुम्हारी त्रिवेणियों पर।
हाँ, एक पोस्ट में कुछ एक ही लगाया करो। त्रिवेणियां या फिर कवितायें या फिर नज़्म। हम उलझ जाते हैं वर्ना...
अपूर्व जी कहाँ हैं इतने दिनों से कोई नयी रचना नहीं आयी ........
ReplyDeleteतेरी पहचान के रैपर्स उड़ा दिये हवा में, हँस कर
ReplyDeleteवक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है.
आपकी त्रिवेनियों में टॉफी ,रेपर,आदि प्रतीकों का प्रयोग से हिंदी कविता के सुन्दर उपमान है.
तेरी पहचान के रैपर्स उड़ा दिये हवा में, हँस कर
ReplyDeleteवक्त ने तेरे नाम की टॉफ़ी, फिर लबों पे रख ली है.
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें !
shukriya apoorv.
ReplyDeletetriveniyan bahut achchi hain.sampreshan mein poori tarah safal .
nafis,mahsosiyat,khayaalon ki pukhtagi,achhe she'r kahe hain aapne... ye tino hi chijen aapkee gazalon me padhane mili hai... wese yah gazal bahut pahale padh chukaa tha , darpan ne aapke blog ke baare me bataya tha mujhe... aur uske saamane hi padhaa tha aapki yah gazal... achhe ash'aar kahe hain aapne... guru bhaaee gautam ki salaah bhi li hai ye to aur bhi achhi baat hai isase kasauti pe kasi gayee hai fir gazal... aage bhi achhe gazal kehen yahi ummid karta hun... badhaayee
ReplyDeletearsh
is tippani ko apne pichhali gazal ke liye maane...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ती | बधाई !
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