Saturday, December 31, 2011

कैलेंडर बदलने से पहले


आज, वक्त के इस व्यस्ततम जंक्शन पर
जबकि सबसे सर्द हो चले हैं
गुजरते कैलेंडर के आखिरी बचे डिब्बे
जहाँ पर सबसे तंग हो गयी हैं
धुंध भरे दिनों की गलियाँ
सबसे भारी हो चला है
हमारी थकी पीठों पर अंधेरी रातों का बोझ
और इन रातों के दामन मे
वियोग श्रंगार के सपनों का मीठा सावन नही है
इन जागती रातों की आँखों मे
हमारी नाकामयाबी की दास्तानों का बेतहाशा नमक घुला है
इन रातों के बदन पर दर्ज हैं इस साल के जख्म
वो साल
जो हमारे सीनों पर से किसी शताब्दी एक्सप्रेस सा
धड़धड़ाता गुजर गया है

और इससे पहले कि यह साल
आखिरी बूंदे निचोड़ लिये जाने के बाद
सस्ती शराब की खाली बोतल सा फेंक दिया जाय
कहीं लाइब्रेरी के उजाड़ पिछवाड़े मे,
हम शुक्रिया करते हैं इस साल का
कि जिसने हमें और ज्यादा
बेशर्म, जुबांदराज और खुदगर्ज बना दिया
और फिर भी हमें जिंदगी का वफ़ादार बनाये रखा

इस साल
हम शुक्रगुजार हैं उन प्रेमिकाओं के
जिन्होने किसी मुफ़लिस की शरीके-हयात बनना गवारा नही किया
हम शुक्रगुजार हैं उन नौकरियों के
जो इस साल भी गूलर का फूल बन कर रहीं
हम शुक्रगुजार हैं उन धोखेबाज दोस्तों के
जिन्होने हमें उनके बिना जीना सिखाया
हम शुक्रगुजार हैं जिंदगी के उन रंगीन मयखानों के
जहाँ से हर बार हम धक्के मार के निकाले गये
हम शुक्रगुजार हैं उन क्षणजीवी सपनों का
जिनकी पतंग की डोर हमारे हाथ रही
मगर जिन्हे दूसरों की छतों पर ही लूट लिया गया
उन तबील अंधेरी रातों का शुक्रिया
जिन्होने हमें अपने सीने मे छुपाये रखा
और कोई सवाल नही पूछा
उन उम्रदराज सड़कों का शुक्रिया
जिन्होने अपने आँचल मे हमारी आवारगी को पनाह दी
और हमारी नाकामयाबी के किस्से नही छेड़े !

और वक्त के इस मुकाम पर
जहाँ उदास कोहरे ने किसी कंबल की तरह
हमको कस कर लपेट रखा है
हम खुश हैं
कि इस साल ने हमें सिखाया
कि जरूरतों के पूरा हुये बिना भी खुश हुआ जा सकता है
कि फ़टी जेबों के बावजूद
सिर्फ़ नमकीन खुशगवार सपनों के सहारे जिंदा रहा जा सकता है
कि जब कोई भी हमें न करे प्यार
तब भी प्यार की उम्मीद के सहारे जिया जा सकता है।

और इससे पहले कि यह साल
पुराने अखबार की तरह रद्दी मे तोल दिया जाये,
हम इसमें से चंद खुशनुमा पलों की कटिंग चुरा कर रख लें
और शुकराना करें कि
खैरियत है कि उदार संगीनों ने
हमारे सीनों से लहू नही मांगा,
खैरियत है जहरीली हवाओं ने
हमारी साँसों को सिर्फ़ चूम कर छोड़ दिया,
खैरियत है कि मँहगी कारों का रास्ता
हमारे सीनों से हो कर नही गुजरा,
खैरियत है कि भयभीत सत्ता ने हमें
राजद्रोही बता कर हमारा शिकार नही किया,
खैरियत है कि कुपोषित फ़्लाईओवरों के धराशायी होते वक्त
उनके नीचे सोने वालों के बीच हम नही थे,
खैरियत है कि जो ट्रेनें लड़ीं
हम उनकी टिकट की कतार से वापस लौटा दिये गये थे,
खैरियत है कि दंगाइयों ने इस साल जो घर जलाये
उनमे हमारा घर शामिल नही था,
खैरियत है कि यह साल भी खैर से कट गया
और हमारी कमजोरी, खुदगर्जी, लाचारी सलामत रही।

मगर हमें अफ़सोस है
उन सबके लिये
जिन्हे अपनी ख्वाहिशों के खेमे उखाड़ने की मोहलत नही मिली
और यह साल जिन्हे भूखे अजगर की तरह निगल गया,
और इससे पहले कि यह साल
इस सदी के जिस्म पर किसी पके फ़फ़ोले सा फूटे
आओ हम चुप रह कर कुछ देर
जमीन के उन बदकिस्मत बेटों के लिये मातम करें
जिनका बेरहम वक्त ने खामोशी से शिकार कर लिया।

आओ, इससे पहले कि इस साल की आखिरी साँसें टूटे
इससे पहले कि उसे ले जाया जाय
इतिहास की जंग लगी पोस्टमार्टम टेबल पर
हम इस साल का स्यापा करें
जिसने कि हमारी ख्वाहिशों को, सपनों को बाकी रखा
जिसने हमें जिंदा रखा
और खुद दम तोड़ने से पहले
अगले साल की गोद के हवाले कर दिया

आओ हम कैलेंडर बदलने से पहले
दो मिनट का मौन रखें!!


(हिंद-युग्म पर गतवर्ष प्रकाशित)


(चित्र: गर्ल बिफ़ोर अ मिरर- पिकासो (1932)


27 comments:

  1. आपने कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं है.........बस हैट्स ऑफ कर सकता हूँ आपको.........आपकी भाषा और पोस्ट की रवानगी......इसमें छिपी अग्नि की ललक.........सुभानाल्लाह |

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  2. बेहद धारदार अभिव्यक्ति...

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  3. आओ, इससे पहले कि इस साल की आखिरी साँसें टूटे
    इससे पहले कि उसे ले जाया जाय
    इतिहास की जंग लगी पोस्टमार्टम टेबल पर
    हम इस साल का स्यापा करें
    जिसने कि हमारी ख्वाहिशों को, सपनों को बाकी रखा
    जिसने हमें जिंदा रखा
    और खुद दम तोड़ने से पहले
    अगले साल की गोद के हवाले कर दिया

    आओ हम कैलेंडर बदलने से पहले
    दो मिनट का मौन रखें!!


    बेहद प्रभावशील रचना
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
    vikram7: आ,साथी नव वर्ष मनालें......

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  4. जिसने कि हमारी ख्वाहिशों को, सपनों को बाकी रखा
    जिसने हमें जिंदा रखा
    और खुद दम तोड़ने से पहले
    अगले साल की गोद के हवाले कर दिया
    nothing remains to be said!
    wonderful poetry!!!

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  5. sach mein kahne ko kuch nahi... itna kuch oppadhne ke baad... awesomee... just awesome....

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  6. किस किस चीज़ का मौन रखे ? अपने अज्ञात अपराधो का भी...ओर उन अपराधो का जो मुसलसल जारी है .....मौन कितना लम्बा खींचेगा ........है ना

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  7. यथार्थवादी कविता.. खूबसूरती से कही गई।

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  8. यथार्थवादी कविता.. खूबसूरती से कही गई।

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  9. आओ हम कैलेंडर बदलने से पहले
    दो मिनट का मौन रखें!!
    awesome...

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  10. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
    vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

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  11. मैं अपना शिल्प, कथन और कहन खो चूका हूँ. मुझे लिखना सिखा दो. कुछ raasta dikhaao.

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  12. सुंदर रचना..............
    सशक्त लेखन...मगर ये तो पुरानी पोस्ट है............

    आशा है जल्द कुछ नया लिखेंगे.

    सादर.

    अनु

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  13. अपूर्व बहुत दिनों बाद तुम्हे पढ़ा अच्छा लगा ...तुम्हारे शब्दों में एक पवित्र दर्द है उलीचता सा ...ओर उसमे आचमन लेकर सब कुछ शुध्ध सा हो जाता है ख़ास तौर पर ये पंक्तियाँ अपील करती हेँ

    आओ, इससे पहले कि इस साल की आखिरी साँसें टूटे
    इससे पहले कि उसे ले जाया जाय
    इतिहास की जंग लगी पोस्टमार्टम टेबल पर
    हम इस साल का स्यापा करें
    जिसने कि हमारी ख्वाहिशों को, सपनों को बाकी रखा
    जिसने हमें जिंदा रखा
    और खुद दम तोड़ने से पहले
    अगले साल की गोद के हवाले कर दिया

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  19. ठीक है 2 मिनट का मौन हो गया। मेरा मतलब एक साल का :-/ ...अब बदल दो कैलेंडर को भी शर्म आ रही ..:)

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  20. पूजा जी और KC सर ने आपका ज़िक्र किया था। बहुत तारीफ़ की थी। लिंक लिया मैंने और आ धमका।

    पहली कविता पढ़ रहा हूँ और अचंभित हूँ। बड़ा बदनसीब हूँ कि इतनी देर से आमद हुई। क्या कमाल लिखते हैं। झकझोर दिया आपने।

    अपूर्व सर! आप लिखा कीजिये। हम जैसों पर अहसान होगा।

    प्रेम! दुआ! सलामती!

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  21. बहुत बढ़िया, अत्ति सुंदर ! जारी रखे ! Horror Stories

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