Friday, October 30, 2009

बवालों सी रातें


फ़सादों से दिन हैं, बवालों सी रातें
जवानी की सरकश मिसालों सी रातें


अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
कटें कैसे, भूखे सवालों सी रातें


उजालों मे झुलसे नजर के शज़र जब
बनी हम-सफ़र, हमखयालों सी रातें


जो खिलता अगर तेरी कुर्बत का चंदा
निखर जातीं दिन के उजालों सी रातें


हो जायेगी सूनी
ये महफ़िल भी इक दिन
रहेंगी बची, प्यासे प्यालों सी रातें


ये शाम-ओ-सहर का हटाओ भी परदा
खिलें दिन मे, शर्माये गालों सी रातें


बिखर जायें छन-छन, सितारे फ़लक पे
खुलें जब, तेरे काले बालों सी रातें


गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें



(सरकश- ढीठ, विद्रोही; शजर- वृक्ष; कुर्बत- साथ, निकटता )

(हरकीरत जी और गौतम साहब की सलाह पर संशोधित)

58 comments:

  1. शर्माये गालों सी रातें
    अपूर्व रात के लिये गालों का यह बिम्ब बिलकुल नया है यह प्रयोग बहुत बढ़िया लगा ।

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  2. शाम-ओ-सहर का यह परदा हटा दो
    खिलें दिन मे, शर्माये गालों सी रातें


    bahut sunder panktiyan hain......is kavita mein ek bilkul hi naya andaaz dikha hai..... kai para man ko moh lete hain..... urdu ka bahut achcha prayog kiya hai.....

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  3. फक्कड़ दिनों में 'प्रेम'कहती है ग़ज़ल.
    आह औए वह तो क्या कहूँ,बस खूब महसूस की है आज इसे.

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  4. बेहिसाब बेहतरीन बात कही अपूर्व मियाँ। इस अंदाज़ में कह जाना आप ही के बस की बात थी। आपकी अदा मेहनत का बेमेहनत मुज़ायरा है।

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  5. अपूर्व जी
    सच सच मे ये सब बाते सिर्फ आप ही कह सकते है ........हर एक शेर बेमिशाल है इसलिये कि उनमे एक नया प्रयोग देखने को मिल रहा है ..............किताबे जहाँ मे अल्फाजो की बाते,

    हूरो को भी आती है तुमसे, हुन्नर की ये बाते !

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  6. गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
    दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें

    yahan apke vision ki vyapakta

    ka praman milta hai .


    thanx...

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  7. अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
    कटें कैसे, भूँखे सवालों सी रातें
    bahut badhiyaa

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  8. Comment (At first glimps):

    Gazal itni behterin hai ki ek behterin she'r

    "गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
    दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें"

    bhi.....
    khair choro zaldi bazi main mujhse comment na hoga....

    Bus itna hi kahoonga ki Aproov bhai is ghazal main ek hi she'r (wo bhi thoda bahut) hai jismein main apni thodi bahut so called pandataiye dikha sakta hoon....


    Aur haan....
    Congrats !!

    Indi blogger ke liye best of luck...
    Lobbying Shuru hui?
    ya COO bane rehna hai?
    ;)

    ...abhi good night !!

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  9. अपूर्वजी,
    हिंदी ग़ज़लों की अनेक प्रस्तुतियां पढ़ चुका हूँ; कई रंग देखे हैं; इतना ही कह सकता हूँ कि आपकी इस ग़ज़ल का रंग अलग ढंग का और चटक-शोख रंग है ! उस पर तुर्रा ये कि अलग-अलग मिसरों में अलग-अलग नूर है : इस मिसरे को दुलारने का मन होता है--
    हो जायेगी सूनी महफ़िल ये इक दिन,
    रहेंगी बची, प्यासे प्यालों-सी रातें .
    अतिरिक्त ये कि मेरा आभार स्वीकार करें, आपने मेरी पुकार सुन ली !
    पुनः निवेदन यह कि दसवीं किस्त में जब 'अप्रतिम अज्ञेय' सिमट गए तो आपके नीर-क्षीर विवेचन की आस थी, वह पूरी न हुई. 'नीर-क्षीर' से आप मेरा आशय समझ गए होंगे--प्रशंसा सब को प्रिय होती है; लेकिन मुझे आलोचना भी प्रिय है ! आप निःसंकोच भाव से लिखें; क्योंकि आपके आग्रह पर ही मैंने वह संस्मरण लिखा था, यह आप जानते हैं !
    अवांतर तथ्य ये कि 'एक दीप प्रज्वलित...' की आरंभिक पंक्तियों से आपके मन में उपजी आशंका निर्मूल नहीं थी. बस, उस आघात को सहे मुझे प्रायः पंद्रह वर्ष हो चुके हैं; कविता अब उपजी है !
    सप्रीत--आ.

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  10. हो जायेगी सूनी महफ़िल ये इक दिन
    रहेंगी बची, प्यासे प्यालों सी रातें.har kadam pe udhar mudhke dekha unki mahfil se hum utth to aaye....गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
    दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें...jo kahkaho se teri bazam me shreek raha....kise khabar thi ki wo tanha ho ke roya tha...

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  11. shabd nahi mile comment karne ke liye!!!
    aur han...
    गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
    दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें...
    ekdam se laga jaise hamari baat ho rahi ho
    intern lag nahi rahi, job par bhikaali chaya hai...
    wah re recession, hampe kya khoob kahar dhaya hai..

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  12. poori gazal me रिसेशन’ period hi hai..boom nahi...invester grievances cell bhi hote hai...anyway hope 4 the best....sitare falak pe bikhar jayenge.....

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  13. सोच ही रहा था कहां गुम हो गये..लगता था जिंदगी की गलियों में मुनादी करनी पड़ेगी....किसी हसीं से नौजवान को तलाशने की ...आज देखा तो तो तुम राते बिछाकर बैठे हो

    उजालों मे झुलसे नजर के शज़र जब
    बनी हम-सफ़र, हमखयालों सी रातें





    बहुत अच्छे

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  14. अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
    कटें कैसे, भूँखे सवालों सी रातें

    -बहुत बेहतरीन गज़ल!!

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  15. उजालों मे झुलसे नजर के शज़र जब
    बनी हम-सफ़र, हमखयालों सी रातें

    बहुत खूब....!

    खिलता अगर तेरी कुर्बत का चंदा
    निखर जातीं दिन के उजालों सी रातें

    ओये होए ....!!

    शाम-ओ-सहर का यह परदा हटा दो
    खिलें दिन मे, शर्माये गालों सी राते

    लाजवाब....!!

    आनंद वर्धन जी की पंक्तियाँ चुरा रही हूँ.....
    "अलग-अलग मिसरों में अलग-अलग नूर है : इस मिसरे को दुलारने का मन होता है--"


    ये 'भूँखे ' शब्द समझ नहीं आया जरा ....!!

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  16. माफी भाई देरी से आने के लिए '
    बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने बधाई स्वीकार करे

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  17. शाम-ओ-सहर का यह परदा हटा दो
    खिलें दिन मे, शर्माये गालों सी रातें ...

    APOORV JI .... BAHOOT HI KHOOB GAZAL HAI ... AAPKA YE ROOP BHI KAMAAL KA HAI .... DILKASH SHER HASIN ... BARBAS MUSKAAN LE AATE HAIN PADHNE KE BAAD ...

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  18. अपूर्व.... i must salute you !

    लाजवाब हैं अशआर सारे के सारे...दिल से। दिल से कह रहा हूँ। ख्याल, मिस्‍रे, बंदिश...एक दो शेरों में बहर भटक रही है, जो तुम अन्यथा न लो तो ठीक करना चाहता हूँ यहाँ। इतनी बेमिसाल ग़ज़ल को कहीं से भी कमजोर पड़ते छोड़ देना संपूर्ण सृष्टि के लिये पाप-सदृश्य होगा।

    लाजवाब बहर चुनी है तुमने...दिल-चुराते काफ़ियें और मोहक रदीफ़।

    तीसरे शेर का पहला मिस्रा तनिक वजन से बाहर जा रहा है। ’खिलता’ से पहले यदि ’जो’ लगा दिया जाये तो अर्थ भी स्पष्ट हो जाता है और शेर भी बकायदा बहर में आ जाता है।
    "जो खिलता अगर तेरी कुर्बत का चंदा
    निखर जातीं दिन के उजालों सी रातें"

    उसी तरह चौथा शेर का भी मिस्रा-उला बहर से बाहर जा रहा है,इसे अगर यूं कर लें "हो जायेगी सूनी ये महफ़िल भी इक दिन/रहेंगी बची, प्यासे प्यालों सी रातें"...अहा, क्या शेर बुना है तुमने। hats off!

    छठा शेर का भी मिस्रा-उला तनिक वजन से बाहर है। इसे यदि यूं कर लें हम "ये शाम-ओ-सहर का हटाओ भी परदा’...अहा!


    उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़...अपूर्व, भई हम तो लुट गये इस ग़्ज़ल पे। आखिरी शेर के अंदाज़े-बयां ने रही-सही पूरी कसर निकाल दी।

    मेरे सुझावों का अन्यथा न लेना। जरा भी स्मार्ट बनने की कोशिश नहीं कर रहा मैं...बस इतने खूबसूरत ग़ज़ल को तनिक भी भटकते देखना जरा बर्दाश्त से बाहर हो रहा था।
    बहरे-मुतकारिब{122-122-122-122} पर बैठी ये ग़ज़ल खूब गुनगुनाने के काबिल है। "मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये" या फिर "ये दिल और उनकी निगाहों के साये" की मस्त धुनों पर गायी जाने वाली तुम्हारी इस ग़ज़ल पे अपना लिखा सब निछावर...

    फिर से आऊंगा पढ़ने!

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  19. ab kya boloon Apoorva bhai, bas lagta hai Gulzar ji ke raste pe chal rahe ho wo bhi bina kisi galti ke... :)
    Jai Hind

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  20. शाम-ओ-सहर का यह परदा हटा दो
    खिलें दिन मे, शर्माये गालों सी रातें
    बहुत ही सुन्दर भाव और रचना

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  21. Gautma ji ki baat se sehmat hote hue sabse pehle us she'r ki baat karta hoon dost jo mujhe sabse kum pasand aaiya (is ghazal main):

    गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
    दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें

    maanta hoon ki ye ek musalsal ghazal nahi hai par ye last she'r ghazal ki rumaniyat ko ghata raha hai,
    aur kyun ye aap jaante hain....
    ...ye main tab keh raha hoon jabki shayad as an indivisiual ye mera sabse pasandida she'r ho sakta hai.
    meri ek ghazal thi 'Chutki main' (aapne to padhi hi hai) usmein bhi 2 3 she'r aise hi the...

    "कभी वो प्याज़ के आंसू, कहीं पे अल्पमत होना,
    बदलती है हमारे देश की सरकार चुटकी मे।"

    "मेरा ये देश 'वन्दे मातरम्' के गीत से जागा,
    उठा गांडीव झटके से, उठी तलवार चुटकी में।"

    aap mera mantanya samajh gaye honge....

    aur haan "Gullak' mujhe bhi fasinate karta hai....
    :)

    baaki she'r baad main.

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  22. अपूर्व जी हमेशा की तरह उम्दा...भाई मान गए...

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  23. अपूर्व जी एक से बढ़ कर एक बेहतरीन शेर..भाई आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और बस डूब ही गया बहुत खूबसूरत शब्द पिरोए है आप और अंतिम लाइन तो और भी बेहतरीन रिशेसन हम से भी बहुत हद तक जुड़ा है सो दिल मे बस गया पूरा नज़्म...बहुत बहुत धन्यवाद!!!

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  24. Apoorv......... main phir aa gaya padhne.......... kya kahu n ab? hats off to u....... another feather added in yo collection........

    bahut hi achchi lagi yeh post.......

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  25. पहली बात शब्द के बड़े धनी हो, दूसरी की जल्दबाजी में कविता नहीं पढ़ते और पूरा मर्म समझने की कोशिश करते हैं...

    तीसरा की क्या कमाल लिखते हैं... बहुत कसा हुआ... मैं अभी तक कुछ कहने लायक नहीं हुआ हूँ... और यह आपसे सीखा है... अगर सिर्फ बहुत उम्दा, या कमाल कह दूँ तो बेमानी होगी... यह विशेषण एक गजल के लिए नहीं हो सकती... जैसे ही कुछ नया कहने को मिलता है फिर आता हूँ... तब तक अपने लिए यह ले जाता हूँ...

    हो जायेगी सूनी ये महफ़िल भी इक दिन
    रहेंगी बची, प्यासे प्यालों सी रातें

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  26. jinke dvara snshodhit he, unhone gazal me chaar chaand lagaa diye, fir bhi jab goutamji ne kuchh nuskh nikale he un par jaroor gour karenge aap. gazal ke mamale me me bahut adna saa hoo, yaani isme hamari aql nahi chalti, lihaza kuchh likhna bhi thik nahi, haa, maza aaya aour ise likhne me kotahi nahi bartunga.

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  27. अपूर्व,
    आपकी गजल तो उस्तादों को पीछे छोड़ रही है,गौतम भाई की सलाह मिली तो स्वर्ण कंचन बन गई है आपकी गजल.एक एक शेर स्तब्ध कर देने वाला है.कई ख्याति के गजलकारों की कई रचनाओं में कुछ एक इस स्तर की बन पड़ती है.गौतम भाई की टिप्पणी के बाद कुछ कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती है.आप हिंदी गजल का भविष्य है.
    शुभकामनाएं!
    (हाँ आपकी गजल के शेर मैं जरूर आपके सन्दर्भ के साथ उपयोग में लेना चाहूंगा.)

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  28. उजालों मे झुलसे नजर के शज़र जब
    बनी हम-सफ़र, हमखयालों सी रातें

    यूं तो हर पंक्ति अपने आप में बेमिसाल है, कुछ पंक्तियां को दिल को छू गई लाजवाब प्रस्‍तुति के लिये बधाई, और आगामी रचनाओं के लिये शुभकामनायें ।

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  29. अपूर्व...
    कहा जाता है की किसी भी व्यक्ति पर उसके नाम का असर होता है.....
    लेकिन यहाँ तो लगता है 'अपूर्व' शब्द ही तुम्हें देख कर बना है....
    You are just too good to be true......!!!
    क्या तुम सच-मुच हो ???
    अदा दी ....

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  30. हो जायेगी सूनी ये महफ़िल भी इक दिन
    रहेंगी बची, प्यासे प्यालों सी रातें

    kya aap mante hain bhai ki kai baar aadmi khud nahi likhta, koi usse likhwata hai....

    ...is sh'er ko khud padne ke baad ek baar to aapke muh se bhi 'Wah wah' nikla hi hoga?
    sach sach batana?

    ReplyDelete
  31. फ़सादों से दिन हैं, बवालों सी रातें
    जवानी की सरकश मिसालों सी रातें


    अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
    कटें कैसे, भूखे सवालों सी रातें

    aanand ji ki baton se main bhi sahmat hoon .bemisaal

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  32. उम्दा गज़ल

    गज़ल में कहो या कहो बेतुकी ही
    कहते हो हरदम मिसालों सी बातें
    --बधाई

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  33. रातों को तरह तरह के बिम्बों से यो सँजोना बड़ा प्यारा लगा।

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  34. मैं बता सकता हूँ कि आपके यूनी कवि चुने जाने पे मुझे कितनी ख़ुशी हो रही है. लग रहा है जैसे मैं हीं चुना गया हूँ...बहुत बधाई आपको और खुद को भी...

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  35. अपूर्व जी मेरे ब्लॉग पर आने और मेरे प्रयोग को परख कर सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार
    आप का प्रयोग अद्वितीय है कुछ नए प्रयोग करने की प्रेरणा देता है
    आभार रचना दीक्षित

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  36. अ अ ...हा....ये बात तो हमें पता ही नहीं थी .....यूनी कवि जी कुछ मिठाई - विठाई हो जाये .....???

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  37. वाह !!
    बेहतरीन गज़ल
    आनंद आ गया पढ़कर मित्र

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  38. घूम रहा था यह ग़ज़ल दिल में कहीं... इस जंगल जैसे शहर में भागते-दौड़ते...

    इसलिए फिर.. फिर पढने चला आया... ज़रा देखो तो गौतम जी क्या लिखते हैं... अब उनके जैसा पारखी अगर अपना लिखा न्योछावर कर रहा है तो यह 'घास-पात' क्या चीज़ है ?????/

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  39. सुन्दर ग़ज़ल
    कवितायेँ भी, आसमान से ऊँची पहाड़ों को नापती हुई. बढ़िया

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  40. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है -
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
    बहुत ख़ूबसूरत, शानदार और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई!

    ReplyDelete
  41. बिखर जायें छन-छन, सितारे फ़लक पे
    खुलें जब, तेरे काले बालों सी रातें

    ये लाईन्‍स तो बहुत ही खूब हैं।

    ReplyDelete
  42. प्रिय अपूर्व,

    सबसे पहले तो यूनि-कवि चुने जाने के लिये बहुत सी बधाईयाँ।

    इस गज़ल के बारे में मेरा कुछ भी कहना बेमानी ही होगा, क्योंकि जब गौतम जी, प्रकाश, दर्पण, हरकीरत जी, आदि ने इतना कुछ कहा है, हम तो बस गौतम जी की टिप के अनुसार गुनगुना के ही लुत्फ लिये लेते हैं।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  43. कत्ल कर डाला अपूर्व.. बस कत्ल..!

    पता नहीं क्यों पियूष मिश्रा साहब की याद दिला बैठे..

    ReplyDelete
  44. अपूर्वजी,
    ओम भाई की क्षणिकाओं पर आपकी टिपण्णी पढ़ी, आपकी कई-कई पंक्तियों पर झूम जाता हूँ ! मेरी यह प्रतिक्रिया मेरे झूम उठने का प्रमाण हैं :
    ''मगर जिंदगी ख्वाबों के मुँह पर ठंडे पानी के छीटे मार कर खड़ा कर देती है..काम पर जाने के लिये...''
    कितनी सहजता से ख्वाब और ज़िन्दगी की कश-म-कश को सामने खडा कर दिया है आपने ! कुर्बान हुआ जाता हूँ !!
    सप्रीत--आ.

    ReplyDelete
  45. गम-ए-बेवफ़ाई, फिर उस पे ’रिसेशन’
    दिवानों की निकलीं दिवालों सी रातें


    हर शेर बेहतरीन..मगर ये शेर सब पर भारी....!

    सुब्हानअल्लाह

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  46. bahut khoobsurat ghazal kahi aapne

    ReplyDelete
  47. बिखर जायें छन-छन, सितारे फ़लक पे
    खुलें जब, तेरे काले बालों सी रातें

    अपूर्व जी अब फलक पे इन घटाओं के अलावा भी कुछ और आने दीजिये .....!!

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  48. अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
    कटें कैसे, भूखे सवालों सी रातें

    Dhalta sooraj, phela jungle, rasta gum !!

    Humse poocho kaisa aalam hota hai?

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  49. फ़सादों से दिन हैं, बवालों सी रातें
    जवानी की सरकश मिसालों सी रातें

    अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
    कटें कैसे, भूखे सवालों सी रातें

    बेहतरीन अशआर...

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  50. इनदिनों पता नहीं क्यूँ लिखा नहीं जा रहा है हमसे....
    थोडा सा ब्रेक लिया है...और गाना गाने लगे हैं...लेकिन पढने से ब्रेक नहीं लिया...
    खास करके उम्दा लेखन...और वो यहाँ से बेहतर कहाँ मिलेगी...
    बहुत बेहतरीन शेर लगे ये ....

    फ़सादों से दिन हैं, बवालों सी रातें
    जवानी की सरकश मिसालों सी रातें

    अदद नौकरी की फ़िकर मे कटा दिन
    कटें कैसे, भूखे सवालों सी रातें

    वाकई क्या लिखते हो अपूर्व !
    दिल करता है सारा आशीवाद तुम्हें ही दे दूँ.(कोई सुन न ले ...दर्पण बचवा, दीपक, मिथिलेश, पंकज, राकेश)..
    सच बहुत ही 'ज़बरदस्त'.....फिलहाल यही शब्द याद आ रहा है....(बुढ़ापा आ रहा है...किसी से कहना नहीं) :):)

    Didi...

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  51. जो खिलता अगर तेरी कुर्बत का चंदा
    निखर जातीं दिन के उजालों सी रातें
    वाकई,, अपूर्व !

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  52. एक बात तो कहूँगा... ब्लॉग जगत को कुछ बिगडैल और जवान लेखकों की दरकार है... और आप फिट बैठते हैं... इवेनिंग वाक को आया था... सोचा दस्तक देता चलूँ...

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  53. कई राज़ इसमें पड़े ही रहेंगे,
    किसी खोई चाबी की तालों सी रातें.

    सफ़र ज़िन्दगी, मौत मंजिल है सबकी,
    थके ज़िस्म में पड़ती छालों सी रातें.


    Bhai saagar sa'ab hum bhi aa gaye jogger's park main,,,,

    ya yun kahein CP (New Delhi) ke Coffee house main.

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  54. 'ki' aur 'ti' main ek matra gir dein...

    (Ab ghoomnte ghoomte banaye hain to kuch gunjayish to reh hi jaiyegi naa...)

    @ aproov bhai: Abki baar aap daad de sakte hain ye 'Originally' mera 'Original' she'r hai...

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  55. बंधू बहुत ख़ूब लिखते हैं आप! पहली बार आना हुआ अब बार-बार आना होगा इंशा-अल्लाह! आपने प्यास जो जगा दी है.यही दुआ है, जोर-आदी-कलम और ज्यादा!

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  56. कहने को तो कह सकता हूँ | पर चुप रहना बेहतर समझता हूँ |

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  57. Bimbon ka adhbhut prayog !! keep it up!

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  58. bahut khoob likha hai .....

    khas taur pe recession wala sher mazedaar hai...saare recession ke maaro ka dard bayan kar diyaa aapne...

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..क्या कहना है!

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