Wednesday, November 25, 2009

और वक्त के साथ...


हाँ
वह भी कोई वक्त ही हुआ करता था
जब तुम्हारे इंतजार की राह पर दौड़ती
मेरी मासूम बेसब्री के
नाजुक पाँवों मे चुभ जाते थे
घड़ी की सुइयों के नुकीले काँटे
और जब
पाँव के छालों की थकान से रिसते
नमकीन आँसू हमारी रातों को जगाये रखते थे

वह भी कोई रातें हुआ करती थीं
जब कि हम
एक जोड़ी खाली हाँथों को
एक जोड़ी खाली जेबों के हवाले कर
अपने पैरों की जवाँ थकान
आवारा सड़कों के नसीब मे लिख देते थे
और
रात के काँपते गीले होठों पर
फ़ड़फ़ड़ा कर बैठ जाता था
कोई नाम

वह भी कोई शामें हुआ करती थीं
कि न हो कर भी
तुम मेरे इतने करीब हुआ करते थे
कि वक्त एक शरारती मुस्कान दाँतो तले दबाते हुए
’एक्स्क्यूज़ मी’ कह कर
कमरे से बाहर निकल जाता था
दबे पाँव

हाँ
वह भी कोई मौसम हुआ करता था
जब दिल की जेबें तुम्हारी यादों से
हमेशा भरी रहती थीं
और तुम्हारे अनलिखे खतों की खुशबू
हमारी रातों को रातरानी बना देती थी

और
जब किसी को प्यार करना
हमें दुनिया का सबसे जरूरी काम लगता था

मगर तब से
कितना पानी बह गया
मेरे पुल के साये को छू कर

और दुनिया की भरी-पूरी भीड़ मे
उसी गिरहकट वक्त ने काट ली
तुम्हारी यादों से भरी मेरे दिल की जेब
और मैं अपना चेहरा
किन्ही आइने जैसी शफ़्फ़ाक दो आँखों मे
रख कर भूल गया हूँ

अब
रात-दर-रात
मेरी पैनी होती जरूरतें
मेरे पराजित ख्वाबों का शिकार करती जाती हैं
और सुबह-दर-सुबह
मेरे पेट की आग जलाती जाती है
तुम्हारे अनलिखे खुशबूदार खत

और अब
जबकि जिंदगी के शर्तनामे पर
मैने अपनी पराजय के दस्तख़त कर दिये हैं
मैं तुम को हार गया हूँ
और अपने कन्धों पर
जिंदगी का जुँआ ढोने के बाद
मेरी थकी हुई शामें
भूलती जाती हैं
तुम्हारा नाम
हर्फ़-दर-हर्फ़

और घड़ी के नुकीले काँटे
जो कभी तुम्हारे इंतजार की राह पर दौड़ती
मेरी मासूम बेसब्री के
नाजुक पाँवों मे चुभ जाते थे
अब मेरी जरूरतों के पाँच-साला ’टाइमटेबल’ को
’पिन’ करने के काम आते हैं.
....
और खुदगर्ज वक्त
’विलेन’ सा हँसता रहता है.



(चित्र: पैरानोइया-सल्वाडोर डॉली)

54 comments:

  1. कुछ लम्हें ऐसे होते है जो जीवन भर साथ रहते है..एक खूबसूरत एहसास और जिंदगी में बदलाव का दौर बहुत बढ़िया प्रस्तुत की आपने..सुंदर रचना..बधाई

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  2. '' और घड़ी के नुकीले काँटे
    जो कभी तुम्हारे इंतजार की राह पर दौड़ती
    मेरी मासूम बेसब्री के
    नाजुक पाँवों मे चुभ जाते थे
    अब मेरी जरूरतों के पाँच-साला ’टाइमटेबल’ को
    ’पिन’ करने के काम आते हैं.
    ....
    और खुदगर्ज वक्त
    ’विलेन’ सा हँसता रहता है.''
    सुन्दर चित्र खींचा है आपने ...सघन बना दिया ...
    ज्यादा लिख कर क्या कहूँ ... अब तो बस एक ही शब्द निकलता है मुख से .......वाह ....

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  3. बेहतरीन! आप बड़ी खूबसूरती से भावनाओं को नज़्मों में पिरोते हैं।

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  4. नज़्म पढ़ने के बाद...

    बस एक ख़ामोशी है जो लबों के आसपास भटकती हुई पनाह माँग रही है | एहसास भी अदा से लबरेज है | क्या बात है ? पता नहीं !!!

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  5. और खुदगर्ज वक्त
    ’विलेन’ सा हँसता रहता है.

    -ओह्ह!!

    क्या अन्दाज है कहने का!!

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  6. वह भी कोई मौसम हुआ करता था
    जब दिल की जेबें तुम्हारी यादों से
    हमेशा भरी रहती थीं

    बहुत ही सुन्दर.....

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  7. तुम मेरे इतने करीब हुआ करते थे
    कि वक्त एक शरारती मुस्कान दाँतो तले दबाते हुए
    ’एक्स्क्यूज़ मी’ कह कर
    कमरे से बाहर निकल जाता था
    दबे पाँव

    हाँ
    वह भी कोई मौसम हुआ करता था
    जब दिल की जेबें तुम्हारी यादों से
    हमेशा भरी रहती थीं
    और तुम्हारे अनलिखे खतों की खुशबू
    हमारी रातों को रातरानी बना देती थी

    bahut hee achee abhivyktee aapke bhavo kee.vakt kya liye hai hamare liye ye surprise hee rahata hai hum par hai kaise lete hai .

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  8. apoorva ji,
    haseen yaadon aur waqt ki khurduri zameen par ek sath tahalne ka khubsoorat aur dilkash bayaan ! kai panktiyan itni 'sharp' hain ki 'kathkhodva' pakshi ki tarah dil pe chonch marti hain. udhrit karna chahun to sach maniye, puri kavita hi uthani padegi.
    sapreet--anand v.ojha

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  9. post padhi...
    kyee baar padhi...
    ab bhi ik ghante se mouse se scroll kar rahi hun....
    kuch samjh nahi pa rahi kya likhun dun aisa jo fit baithta ho post pe....
    kitne positive way se shuru huee hai post......

    हाँ...

    waqat chahe ’विलेन’ सा हँसता रहता है.
    fir bhi wo hua karta tha.......kaisee hogi masoom besabri??or namkeen ansu jo raat raat bhar jgaye rakhte hai....
    intzaar ke lamhe bhi azeeb hote hai..bjaye seene ke ankho me dil dhadkta hai...

    ghadi ki sueea hai ya koee kirche jo zindgee bhar chubengee...wo shame...wo raate...wo mousam....wo surat.....wo chehra......zindgee bhar yaad ayega.....

    वह भी कोई मौसम हुआ करता था..
    tumahre sath ye mousam frishto jaisa hai...tumhare baad ye mousam bada stayega....

    तुम्हारे अनलिखे खुशबूदार खत..
    ban gye sathi meri tanhayee ke...

    और अब
    जबकि जिंदगी के शर्तनामे पर
    मैने अपनी पराजय के दस्तख़त कर दिये हैं..
    zindgee sharat hai to nibhayenge......


    cmnt post ke worth nahi hai...kar hi nahi paungee.......post kaisee hai nahi kah rahi hun.....

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  10. ये दवाई है... एक बार लेने लायक नहीं... मैंने अभी सिर्फ दो स्पून ली है...

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  11. सुबह पढ़ कर लौट गई थी
    धडकने थी कि
    रात के काँपते गीले सवालों पर
    फड़फड़ा के बैठी
    उन नुकीली सुइयों का दर्द
    सीने में देर तक महसूस करती रहीं
    और मन हैरान था वक़्त की लिखावट पर
    'एक्स्क्यूज़ मी' कहकर यूँ दबे पाँव निकल जाना
    रातों का यूँ रातरानी बन जाना
    जेबों में यादों की खुशबू.....

    बस एक जगह ठिठकी थी
    जहाँ तेरी आँखों का पानी
    पुल के साये को छूकर बहने लगा था
    सोचती हूँ ये ज़िन्दगी शर्तनामे हार क्यूँ जाती है
    क्यूँ यह वक़्त खलनायक सा उड़ाता है हंसी
    हमारी ख़ाली होती जेबों को देख ......

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  12. बहुत पीड़ा के साथ कह रहा हूँ... मुझे आपसे जलन हो रही है...
    आपने और दर्पण ने आकर ब्लॉग को जो बयार बक्शी है उसका तर्जुमा नहीं किया का सकता... कमबख्त सोच, और expression ही बदल डाला...

    यह तूने ठीक ही किया ठाकुर.... :)

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  13. और घड़ी के नुकीले काँटे
    जो कभी तुम्हारे इंतजार की राह पर दौड़ती
    मेरी मासूम बेसब्री के
    नाजुक पाँवों मे चुभ जाते थे
    अब मेरी जरूरतों के पाँच-साला ’टाइमटेबल’ को
    ’पिन’ करने के काम आते हैं.
    ....khudgarz waqat ka khel dekhe....
    jo jaroorate kabhi aznabi thi apni ban gyee jis apne ka intzaar tha wo aznabi ban gya.....

    [....jarrorato ke panch saalaa time table ko pin karna....]

    kitni sachayee se mujhse kah diya zindgee ne...
    tun nahi to mera koee doosra ho jayega.....

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  14. भाव और अभिवयक्ति सुंदर है इसमें यदि शब्द कम कर देते तो और ज्यादा प्रभाव पूर्ण हो जाती..
    कितना सच कहा है ...
    जबकि जिंदगी के शर्तनामे पर
    मैने अपनी पराजय के दस्तख़त कर दिये हैं

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. jabardast apoorvji,
    abhi kai baar padhhunga..baad me aataa hu

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  17. और अब
    जबकि जिंदगी के शर्तनामे पर
    मैने अपनी पराजय के दस्तख़त कर दिये हैं
    मैं तुम को हार गया हूँ
    और अपने कन्धों पर
    जिंदगी का जुँआ ढोने के बाद
    मेरी थकी हुई शामें
    भूलती जाती हैं
    तुम्हारा नाम
    हर्फ़-दर-हर्फ़
    .......बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  18. Post padhi, Office main nahi kuhl rahi thi to apne ek khaas ;) se mail karne ke liye kaha tha aur phir bada lamba comment bhi kiya tha....///par pata nahi kyun post nahi kiya. main soch raha tha ki is kavita se to kai kavita nikal sakti hain. To lobh samvaran nahi kar paaiya.Agli koi post 'Apoorv (literally)' na lage balki 'Aproov (Noun)' lage meri to aap samajh lena.(inspiration , not copy);)

    Not -to-agree:
    Haan par (apne hi pre conceive notion ke karan, koop mandookta kinda) kavita poorn lagte hue bhi laga ki chaar darwaje khole aapne aur 'Wqut' ke alawa baaki teen darwaje band nahi kiye (karna bhool gaye nahi kahoonga kyunki aapne purposely aisa kiya hoga).

    pehle 4 stanza (हमारी रातों को रातरानी बना देती थी) tak kavita chandbaddh (ya ya i know the meaning of chandhbaddh) lagi aur phir uske baad kavita main chayavaad.....

    ....mano 'Surdaas' aur 'Suryakaant Tripathi' ka 'Cusp' ho.


    Unfortunately i -too-agree aur diabites ho jaane wala comment agli baar (aur ye unfortunately iske liye nahi hai ki main comment agli baar karoonga balki isliye hai ki i'm lovi'n it wali baatein zayada hain ismein banispant firearms & knives wali islye agli ladai ke liye bus try ball type khalli-mucchi ki ladai karke ja raha hoon.

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  19. लेकिन ज़िन्दगी इन सबके बावज़ूद अच्छी लगती है इसलिये कि इस ज़िन्दगी ज़िन्दगी को दिलचस्प बनने के लिये एक लफ्ज़ मोहब्बत ही काफी है .. बाकी सच्चाइयाँ भी अपनी जगह है लेकिन .. इस अनुभूति का जवाब नहीं

    ReplyDelete
  20. नमकीन आँसू हमारी रातों को जगाये रखते थे
    खूब लि‍खा है।

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  21. मेरी उम्मीदे तुमसे बहुत उंची है .....ओर सच बतायूं वे कभी ना उम्मीद नहीं हुई है ...ओर उंची ओर उंची होती जाती है.....

    अपूर्व यू आर जेम ......

    ReplyDelete
  22. और खुदगर्ज वक्त
    ’विलेन’ सा हँसता रहता है.

    अपूर्व जी ...... बहुत देर से आप आये मगर छा गए ........
    कमाल कि रचना है यह ... समय के क्रूर हाथों कि दास्ताँ बहुत ही लाजवाब बयान करी है ...... समय के बदलाव का बखूबी चित्र है इस रचना में ..... सच है समय का पहिया जब चलता है तो अपने पैरों टेल कितने अरमान रोंद जाता है पता ही नहीं रहता .... लाजवाब .... उम्मीद के अनुसार ही लिखा है आपने ...

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  23. यूँ लगा जैसे एक मोटा उपन्यास ५ मिनट में खतम हो गया
    एक ऐसा उपन्यास
    जिसका नायक भी वक्त है
    नायिका भी वक्त है
    और विलेन ?
    विलेन तो वक्त है ही..
    दोनों को मारकर
    हंसता हुआ..

    खुदगर्ज!
    --बेहतरीन अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  24. अब
    रात-दर-रात
    मेरी पैनी होती जरूरतें
    मेरे पराजित ख्वाबों का शिकार करती जाती हैं
    और सुबह-दर-सुबह
    मेरे पेट की आग जलाती जाती है
    तुम्हारे अनलिखे खुशबूदार खत


    और खुदगर्ज वक्त
    ’विलेन’ सा हँसता रहता है.
    मैं तो निशब्द हूँ इस रचना पर । मन की संवेदनाओं का बहाव इतना ल्यात्मक है कि इतनी लम्बी जिन्दगी के फलसफे को पढते हुये कहीं नहीं लगा कि इस दौर मे कितना कुछ घटा होगा। तब जा कर ये रचना जन्म ले पाई होगी। क्या कहूँ लाजवाब और खुदगर्ज़ वक्त विलेन सा हंसता रहता है बहुत खूब शुभकामनायें

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  25. कविता पर अतियथार्थवादी डाली के चित्र ने कविता को एक स्वतंत्र अर्थ दे दिया है,बशर्ते दोनों को साथ में देखा जाय.लिखते वक़्त भी आपने वक़्त को डाली की पिघलती हुई घड़ियों में एक बार ज़रूर देखा होगा.
    कविता आश्वस्त करती है,हिंदी कविता में अद्भुत ऊर्जावान युवा कवि हैं जिनके पास बात को कहने की पहले वाली कलात्मकता और बिलकुल नए तेवर वाली भाषा है.
    समय में और समय से परे.

    ReplyDelete
  26. शुरू से अंत तक बस पढ़ता ही जा रहा हूँ इस कविता को………………क्या कहूँ ?

    ReplyDelete
  27. जब तुम्हारे इंतजार की राह पर दौड़ती
    मेरी मासूम बेसब्री के
    नाजुक पाँवों मे चुभ जाते थे
    घड़ी की सुइयों के नुकीले काँटे
    wakai ghadi ki ye suiyaan kanton se kam nahin lagtin..nice expression.

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  28. kuch adbhut pryog par nazar he-
    पाँव के छालों की थकान से रिसते..
    -'chhalo ki thakaan.../'
    -अनलिखे खतों ..
    -साये को छू कर
    -पराजित ख्वाबों का शिकार

    apoorvji, rachna padhhte rahne ka bhi alag mazaa he/

    ReplyDelete
  29. Jab is 'Dastavez' (poem kahoonga to aapki 101 % sehmati se asehmat ho jaaonga).ko padhta hoon,

    to sochta hoon...
    kahin main aapki(?) kavita (??) ko aapse bhi zayada (Aur aapse bhi zayada) to nahi samajh raha hoon??
    jaise ye....

    "पाँव के छालों की थकान से रिसते
    नमकीन आँसू हमारी रातों को जगाये रखते थे"
    "हमारी रातों को जगाये रखते थे" isko baar baar alag alag context main samajh raha hoon.As in 'paanv ke chale ke dard ke karan, jaagna ya namkeen aanso ko 'previlage' dene ke karan jaagan par phir 'jaage' ki jagah 'जगाये' kehte hain aap to, (no !! no !! entire poem has one and only one meaning in my mind, may be different than other) par har ek individual quote (wow !!! that's an complment!!) main dil ko bahut dimag lagana pad raha hai....
    Kahin padha tha ki left dimag aapke right ke body parts ko manage karta hai aur vice versa.
    aur yahan padh raha hoon, dimag pathak ke dil ko aur dil pathak ke dimag ko control karta hai (more precisely speaking karna chah raha hai).
    Aapke poem ki visheshta yahi hai,jo padhkar is tarah se sochne pe majboor kar deti hai.(soch raha tha dil se comment likhoonga, jaise first time movie dekhne pe dena ho, par kisi critic ki tarah change ho gayi kafiyat aur pen se dimag (?) khurachne laga...)

    ab isko hi dekh lijiye kitna shilp dhoondh nikala hai dil ne ki dimag emotional ho gaya.
    वह भी कोई मौसम हुआ करता था...
    pehle 'anlikhe khat' main wah nikalti hai 'uski khusboo' main aah aur phir raton ko raatrani bana dene main '......' ! ek hi baat se nikalti kai baatein...
    (dil aur dimag ka adbhoot sangam.):


    To agar aapke saath boxing ring main bhi hota to bhi aapse maafi maag ke pehle is poem ki taarif karta aur phir kehta... chalo continue).


    Aapko padh ke lagta hai ki bahut kuch mere saman hai.... Bus Masters* of all trades,jack of none ko chor ke.



    *It Was indeed a Master stroke !!(Not to mention,Again...).
    Taarif aapki isliye zayada nahi kar raha hoon ki har manzil(benchmark) pe lagta hai ki ye to mile stone hi tha bus(par tha Mile stone)

    हाँ
    वह भी कोई वक्त ही हुआ करता था
    main 'hi' ka prayog Awesome ;) laga !!
    aur 'villan(khalnayak)' ka proyag apne 'souvenir(saugat)' ki tarah laga....
    ...zahir hai tulna kar raha hoon to aapki [logical enough apni(B,I,U) bhi] taarif hi kar raha hoounga.

    PS:Aaram se baithkar likhi gayi twarit tippani thi ye.

    'dafatan' aaonga !!

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  30. आसान नहीं यूँ लिख जाना..आसान नहीं..!!!

    इतनी मुलायम जान की गुजरा हर लम्हा, लाल चकत्ते छोड़ जाए और कविता एक एक कर के उसे धोने लग जाए फिर भी ये नजाकतदार पंक्तियाँ तो नहीं बुन पायेगी वो..जो अपूर्व भाई आपने बुनी हैं..

    दर्पण साहब, सागर साहब और डा. साहब (अनुराग जी, और कौन) की टिप्पणियां रचना को एक तरह से पूर्ण बनाती हुईं..ये तीनों अपनी-अपनी विमायें पकड़कर एन्जॉय करते हैं और मै अपनी..मज़ा सबका एक से बढ़कर एक..! पर अपूर्व जी कभी मै सोचा करता था कि शब्दों में सारा कुछ नहीं आ सकता. कुछ "बहुत' बाकी रह जाता है, अनबोला, अनछुआ..! पर एक तरह का पैराडाइम शिफ्ट हुआ है मेरे मन के भीतर आप लोगों को लिखता देखकर..आज 'शब्द" कल से ज्यादा ही सशक्त हुए हैं. पुरानी कसौटियों के दिन लद रहे हैं..उन्हें अब अपना आग्रह छोड़ना चाहिए...

    कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जिनकी कभी उम्र नहीं होती. वो किसी भी उम्र में मिल सकते है और जिनके एहसासों की भी कोई उम्र नहीं होती..सदा जवां बने रहते हैं वे..पर उसे किसी से कह पाना..उसके एक-एक सूत को स्पर्श करा पाना,..हर छूअन को छू पाना...इतना आसान नहीं...मै फिर कहूँगा अपूर्व भाई.......

    आसान नहीं यूँ लिख जाना..आसान नहीं..!!!

    ReplyDelete
  31. मुआफी ..जाने कैसे इस पोस्ट तक आने में मैंने इतनी देर कर दी...हाँ; पर आप देना नहीं मुआफी...मुझे ना ही बख्शो तो ज्यादा अच्छा....!!!

    ReplyDelete
  32. Maasoom besabri aur nazuk pairon me chubhte ghadee ke kante...behad khoob soorat..aisee nazuk tulna kabhi nahi padhi/sunee...!
    Abhi aur padhna hai, abhi to ek hee rachna padh payi hun!

    ReplyDelete
  33. अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।

    ReplyDelete
  34. मेरे पास शब्द और डिग्रियों की कमी नहीं है फिर भी ऐसी कविताओं को कुछ दिया नहीं जा सकता, सिर्फ लेकर जा रहा हूँ. वक़्त की बेवफाई से उपजे चंद शिकवे सदा मेरी जेब में बैठे होते हैं. कमबख्त हर बार बीते दिनों को देखने पर जेब में हाथ डालते ही काट लेते हैं. सच है कि ऐसा ही कुछ मेरे आस पास है, जिसे मैं रूमानी समझता हूँ. दोस्त आपके इस "अचानक" पर हर बार आता हूँ और पढ़ता भी हूँ याद रहे. सुंदर कविता.

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  35. श्रीश जी का कहना वाजिब है... गौर किया जाये...

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  36. जज्बातों को इतनी सरलता से बयाँ करने का हुनर बहुत कम लोगों में होता है,कहने की जरूरत नहीं...आपमें ये हुनर कमाल का है...ख़ूबसूरत कविता...बार बार पढने को मजबूर करती हुई

    ReplyDelete
  37. क्या कहूँ..... जज्बातों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है.....

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  38. "कैसे लिख लेते हो" पूछना अब बेमानी हो गया है तुम्हारे लिक्खे को लेकर। मैं वैसे छंद में विश्वास रखने वाला अड़ियल हूँ, लेकिन तुम्हें {और तुम जैसे दो-तीन और को}, तुम्हारी इन फ्री-वर्स को पढ़ना अपने आप में एक अप्रतिम अनुभव है।...कुछ ऐसा कि जो मेरे छंद पर से जमे विश्वास को डिगा जाये।...कि नहीं कविता तो ये है, ये ही है।

    उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ !

    शायद आने वाले दिनों में टेकनालोजी इतनी एडवांस कर जाये कि तुम्हारे लिक्खे को पढ़ने के बाद उट्ठे जलन के धुँयें की पहुँच कमप्यूटर-स्क्रीन से तुम तक हो जाये...

    अभी-अभी तुम्हारा फोन नंबर सेव किया है अपने मोबाइल में और अब फिर-फिर इस कविता को पढ़ रहा हूँ। सोचता हूँ कि क्या कभी तुम्हारा छटांश भी लिख पाऊँगा मैं?

    फिर से आता हूँ इसे पढ़ने....और डूबने इश्क की इस गहरी सघन अनुभूति में!

    ReplyDelete
  39. दोस्ती गहरी होने की महक आ रही है... क़तर में हम भी हैं... फ़ोन नंबर मुझे भी दिया जाये... आदेश का पालन हो... )..)...)

    ReplyDelete
  40. अहसासों का क्या खूब चित्रण करते हैं आप.

    यही तो बात है. जो कविता समय के गर्त से निकल कर फिर आने वाले समय में समाना चाहती है. भरपूर अपूर्व!

    ReplyDelete
  41. yeh kambaqt waqt unhi palon mein wapas ja kar jam sa kyun nahi jaata ?

    pehli baar padha aapka blog..kaafi had tak mere dil ke ahsaason se mail khata hua.. accha likhte hain..likhte rahiye!

    ReplyDelete
  42. अपूर्व.... आपकी कुछ रचनाएं पढ़ीं... सिर्फ इतना हीं कह सकता हूं कि आप बहुत उम्दा लिखते हैं...

    इंशाअल्लाह... ऊपर वाला आपकी लेखनी को और ताकत दे...
    आमीन...
    सुशांत

    ReplyDelete
  43. मैं तुम को हार गया हूँ
    और अपने कन्धों पर
    जिंदगी का जुँआ ढोने के बाद
    मेरी थकी हुई शामें
    भूलती जाती हैं
    तुम्हारा नाम
    हर्फ़-दर-हर्फ़
    .......sundar bhav abhvykti
    Bahut shubhkamnayne.

    ReplyDelete
  44. फिर से आया था...सोचा बताता चलूँ।

    जादू दुबारा सर चढ़ के बोला...

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  45. jab bhi aata hun, pata nahi kyon lagta hai jaise apne hi jaise kisi ghanghor technical aadmi ke blog par pahunche hain... itna mast kaise likhte ho yaar aap..

    ReplyDelete
  46. bahut khoob........achchhi rachna hai.

    ReplyDelete
  47. नव वर्ष की मंगलमय शुभकामना .

    ReplyDelete
  48. kamaal hai aur kya kahe ,nishabd hai ,man me utarne wali rachna ,nav varsh mangalmaya ho ,
    मैं तुम को हार गया हूँ
    और अपने कन्धों पर
    जिंदगी का जुँआ ढोने के बाद
    मेरी थकी हुई शामें
    भूलती जाती हैं
    तुम्हारा नाम
    हर्फ़-दर-हर्फ़ ----bahut zabardast

    ReplyDelete
  49. Ab se ye homepage hai bhai...

    अब
    रात-दर-रात
    मेरी पैनी होती जरूरतें
    मेरे पराजित ख्वाबों का शिकार करती जाती हैं
    और सुबह-दर-सुबह
    मेरे पेट की आग जलाती जाती है
    तुम्हारे अनलिखे खुशबूदार खत

    uff ye parajit khwaab..aur tis pe shikaar.
    Nahi kahunga ab...lautunga padhne fir se

    ReplyDelete

..क्या कहना है!

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